गीत- प्रकाश तू ही फैलाती है
मैं माटी का दिया और तू मेरी बाती है।
मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।।
मैं हूँ तुझमें तू है मुझमें
ऐसा बंधन है।
तेरे कारण ही मेरा यह
जीवन पावन है।
मैं चन्दन हूँ लेकिन मुझको तू महकाती है।
मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।।
अपने बंधन बँधे यहाँ से
नहीं,वहाँ से हैं।
तन है मेरा लेकिन इसमें
तेरी साँसें हैं।
मेरे गीत रागिनी बनकर तू ही गाती है।
मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।।
जनम-जनम से तेरी-मेरी
रिश्तेदारी है।
मैं जानूँ तू जाने इसको
दुनिया सारी है।
पर इस रिश्ते को तू मुझसे अधिक निभाती है।
मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।।
— डाॅ. कमलेश द्विवेदी