गीतिका/ग़ज़ल

बहार नहीं है

सच का ये संसार नहीं है,
खुशियों का व्यापार नहीं है।

लोग यहाँ जो कसमें खाते,
खाने को आहार नहीं है।

सभी चाहते प्यारी दुल्हन ,
पर बेटी स्वीकार नहीं है।

ख़ुशी नहीं मिलती उस घर में ,
जिस घर में मनुहार नहीं है।

जहाँ खड़ी नफरत दीवारें,
उस घर में अब प्यार नहीं है।

राख के ढेर बहुत हैं लेकिन,
अब उसमे अंगार नहीं है।

तेरा जीवन पतझर जैसा ,
उसमे ”धीर” बहार नहीं है।

— महेंद्र कुमार वर्मा

महेंद्र कुमार वर्मा

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