सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन- 19
प्रस्तुत है लखमी चंद तिवानी की लोकप्रिय सिंधी कविता ‘मुंहिंजे घर में सीरो ठहंदो आ’. भुक्तभोगी यथार्थ की इस व्यंग्यमय कविता को सिंधी कवि सम्मेलनों में बहुत सराहा गया. हिंदी अनुवाद- लीला तिवानी द्वारा.
सिन्धी कविता- लखमी चंद तिवानी
मुंहिंजे घर में सीरो ठहंदो आ
भारत जी राजधानी दिल्ली
दिल्लीअ जो शानु डक्खिणी दिल्ली
उते मुंहिंजो ठिकानो आ
पर पाणीअ भरायो जानो आ
सालि-बी-सालि मुंहिंजो भागु भलारो थींदो आ
ऐम.सी.डीअ जे नल में पाणी ईंदो आ
उहो डींहुं सभागो लगंदो आ,
मुंहिंजे घर में सीरो ठहंदो आ.
बिजलीअ जी छा गाल्हि बुधायां
कंहिंजा-कंहिंजा गुण मां गायां
लिखण विहां त बिजली गुल
लगे थो आहे सभु कुझु ढुलमुल
कहिं-कहिं डींहुं बिजलीअ जी कृपा थींदी आ
मुंहिंजे चपनि ते सुर्खी ईंदी आ
उहो डींहुं सभागो लगंदो आ,
मुंहिंजे घर में सीरो ठहंदो आ.
सड़कुनि जी आ अजब कहाणी
सड़क वेचारी आ वेगाणी
कल्ह हिन खोटी अजु हुन खोटी
अञा ठही मस त वरी बिए कंहिं खोटी
कडहिं-कडहिं सड़क आ सिधी-संवाटी
नको किथे जबलु नको किथे घाटी
उहो डींहुं सभागो लगंदो आ,
मुंहिंजे घर में सीरो ठहंदो आ.
मां सुबुह जो अख़बार पढ़ंदो आहियां
पढ़ंण खां वधीक कुढ़ंदो आहियां
पीउ धीउ सां मुहुं कारो कयो
भाउ भेणु ते ई वारो कयो
चाचे भाइटीअ खे कीन छडियो
मतलबु त को वणंदड़ु समाचारु कीन मिलियो
कडहिं-कडहिं का ख़बर मन मोहींदड़ हूंदी आ
अख़बार पढ़ी लबनि ते मुर्की ईंदी आ
उहो डींहुं सभागो लगंदो आ,
मुंहिंजे घर में सीरो ठहंदो आ.
लगे थो खुशीअ लाइ सिकंदे-सिकंदे हयाती गुज़िरी वेंदी
प्यासी नज़र प्यासी ई रहिजी वेंदी
पैसा खर्चे बि मिलनि था ठला वाइदा
नको किथे सहूलियत नको काइदा
तमन्ना आहे त मां खुशि थी खिलंदो रहां
वर-वर डई इएं चवंदो रहां
हर डींहुं सभागो लगंदो आ,
मुंहिंजे घर में सीरो ठहंदो आ.
-लखमी चंद तिवानी
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हिंदी अनुवाद- लीला तिवानी
मेरे घर में हलवा बनता है
भारत की राजधानी दिल्ली
दिल्ली की शान दक्षिणी दिल्ली
वहां मैंने बनाया बसेरा है
पर पानी ने मुझे तौबा करवाकर घेरा है
साल-दो-साल बाद मेरा भाग्य साथ देता है
ऐम.सी.डी के नल से पानी आता दिखाई देता है
वह दिन सुहाना लगता है
मेरे घर में हलवा बनता है.
बिजली की क्या बात सुनाऊं
किस-किस के गुण मैं गाऊं
लिखने बैठूं तो बिजली गुल
लगता है सब कुछ है ढुलमुल
किसी-किसी दिन बिजली की कृपा होती है
मेरे लबों पे सुर्खी होती है
वह दिन सुहाना लगता है
मेरे घर में हलवा बनता है.
सड़कों की है अजब कहानी
सड़क बिचारी है बेगानी
कल इसने खोदी आज उसने खोदी
बड़ी मुश्किल से बनी तो फिर किसी और ने खोदी
किसी-किसी दिन सड़क होती है सीधी-सादी
न कहीं पर्वत न कहीं घाटी
वह दिन सुहाना लगता है
मेरे घर में हलवा बनता है.
मैं सुबह अख़बार पढ़ता हूं
पढ़ने से ज्यादा कुढ़ता हूं
बाप ने बेटी के साथ मुंहं काला किया
भाई ने बहिन को ही दबोच लिया
भतीजी को चाचे से है गिला
मतलब कि कोई दिलखुश समाचार नहीं मिला
कभी-कभी कोई मनभावन खबर मिलती है
अख़बार पढ़कर अधरों पर मुस्कान खिलती है
वह दिन सुहाना लगता है
मेरे घर में हलवा बनता है.
लगता है खुशी के लिए तरसते-तरसते जिंदगी बीत जाएगी
प्यासी नज़र प्यासी ही रीत जाएगी
पैसे खर्च करके भी मिलते हैं कोरे वादे
न कहीं सहूलियत न कहीं कायदे
तमन्ना है कि मैं खुश रहकर हंसता रहूं
बार-बार यही कहता रहूं
हर दिन सुहाना लगता है
मेरे घर में हलवा बनता है.
– लीला तिवानी
संक्षिप्त परिचय-
श्री लखमी चंद तिवानी जी हिन्दी व सिन्धी में कविता, गीत. भजन, लेख आदि लिखते हैं तथा कविता पाठ व सांस्कृतिक गतिविधियों में प्रतिभागिता करते हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके अनेक कविताएं, गीत व लेख प्रकाशित हुए हैं. उनकी रचनाएं तो अनूठी होती ही हैं, उनकी कविता-पठन शैली भी अनूठी है. वे अनेक कविता प्रतियोगिताओं में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित हुए हैं. “केंद्रीय हिन्दी निदेशालय” के सौजन्य से नवोदित लेखक के रूप में संगोष्ठियों में उन्होंने सक्रिय प्रतिभागिता की है.
श्री लखमी चंद तिवानी जी ने सिंधी कविताओं की एक पुस्तक ‘हरिको पहिंजो आहे’ (सब अपने हैं) लिखी है, जो सिंधी अकादमी, दिल्ली को बहुत पसंद आई और सिंधी अकादमी, दिल्ली के सौजन्य से 2009 में इस किताब को प्रकाशित करवाया गया. सिंधी कविताओं के इस संग्रह में ज़िदगी के अनेक पहलू, गुरु-महिमा, ईश-वन्दना, संस्मरण, चेटी चंडु, अनेक त्योहार, समाज जी कुरीतियों पर चोट, प्रकृति-चित्रण, प्रदूषण हटाकर इको फ्रेंडली पर्यावरण बनाने की ख़्वाहिश, सिंधी-सिंधु और सिंधियत, हास्य-व्यंग्य, सामाजिक चेतना, देशभक्ति आदि विभिन्न विषयों पर खूबसूरत कविताएं और गीत सम्मिलित हैं. इस संग्रह का देश-विदेश में बहुत स्वागत हुआ है.
इस संग्रह की अनेक खूबसूरत कविताएं सिंधी अकादमी की साहित्यिक बैठकों में धूम मचा चुकी हैं. श्री तिवानी जी के कविता-पाठ का खूबसूरत अन्दाज़ सबको हर्षित कर देता है.
आशा है आपने श्री लखमी चंद तिवानी जी की सिंधी कविता ‘मेरे घर में हलवा बनता है’ का लुत्फ उठाया होगा. सिंधी भाषा में कुछ विशेष ध्वनियां ‘ग, ज, ड’ होती हैं, जिनके नीचे अंडरलाइन लगी होती है. ब्लॉग में अंडरलाइन आ नहीं पाई है. विशेष ध्वनियों का उच्चारण भी बहुत खूबसूरत होता है, जो मातृभाषा होने के कारण सिंधी भाषी लोगों को सीखने-बोलने में कोई दिक्कत नहीं होती, स्वतः ही आ जाता है. हमारी आशा है, कि देश-दुनिया के हालात इतने सकारात्मक हो जाएं कि सबके घरों में रोज हलवा बनता रहे अर्थात खुशियों का अखंड साम्राज्य रहे.