सीमांचल का सबक
बिहार विधानसभा के चुनावों में ओवैसी की पार्टी को अकेले पाँच सीटें मिल जाना कोई साधारण बात नहीं है। इसके दूरगामी परिणाम होना अवश्यंभावी है। सीमांचल का क्षेत्र बिहार के उत्तरी-पूर्वी कोने पर वह क्षेत्र है जहाँ गर्दन जैसा एक सँकरा गलियारा प्रारम्भ होता है जो समस्त पूर्वोत्तर भारत को शेष देश से जोड़ता है। याद कीजिए कि इसी सँकरे गलियारे को बन्द करके पूर्वोत्तर के राज्यों को शेष देश से काट देने का सपना टुकड़े-टुकड़े गैंग के मोहम्मद खालिद और शरजील इमाम ने देखा था, जिस पर बहुत चर्चा हुई थी। उनकी इस सोच का आधार यही सीमांचल का क्षेत्र था, जहाँ मुस्लिमों की घनी आबादी है।
सीमांचल में चार जिले हैं- अररिया, पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार। इन चारों जिलों में कुल 24 विधानसभा सीटें हैं और उनमें मुसलमान मतदाताओं का अनुपात 40 प्रतिशत से 60 प्रतिशत तक है। इतनी अधिक मुस्लिम आबादी होने के कारण एक घोर मुसलमान पार्टी द्वारा 5 सीटें जीत जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
इस क्षेत्र में रहने वाले मुसलमान वे बिहारी मुसलमान हैं, जो पाकिस्तान के लिए आन्दोलन चलाने और उसके लिए उपद्रव करने में सबसे आगे रहे थे। लेकिन आश्चर्य है कि पाकिस्तान बन जाने के बाद उनमें से बहुत कम लोग तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान गये, क्योंकि वे बंगलाभाषी नहीं हैं। वास्तव में वे पश्चिमी पाकिस्तान जाना चाहते थे, पर नहीं जा सके। सत्तर के दशक में एक बार बिहारी मुसलमानों के एक जत्थे ने देश में आर-पार पैदल मार्च करते हुए पाकिस्तान में घुसने का निश्चय किया था, परन्तु तब की इन्दिरा गाँधी की सरकार ने इस मार्च को शुरू ही नहीं होने दिया।
तब से ये लोग सीमांचल में ही रहते हुए अपनी आबादी बढाने में लगे हुए हैं, ताकि आगे चलकर वे अपना अलग राज्य और हो सके तो अलग देश माँग सकें। इस उद्देश्य के लिए वे सूअरों की तरह बच्चे तो पैदा करते ही हैं, असम और बंगलादेश के घुसपैठिये भी वहाँ आकर जनसंख्या असंतुलन बढ़ाते रहते हैं। यदि इनकी पूरी जाँच की जाये, तो इनमें से अधिकांश अवैध घुसपैठिये ही निकलेंगे, लेकिन तथाकथित सेकूलर दल अपने तुच्छ राजनैतिक स्वार्थों के लिए इनको राशनकार्ड ही नहीं, बल्कि वोटर कार्ड तक दिलवा देते हैं।
स्पष्ट है कि घनी मुस्लिम आबादी के कारण शीघ्र ही यह क्षेत्र पूरे देश के लिए सिरदर्द बनने जा रहा है। ओवैसी की पार्टी का बिहार के विकास में या इस क्षेत्र के मुसलमानों के विकास में रत्तीभर कोई योगदान नहीं है, फिर भी यहाँ के मुसलमानों की बड़ी संख्या ने तथाकथित सेकूलर दलों के बजाय ओवैसी के दल के उम्मीदवारों को वोट दिया, क्योंकि वे मुसलमान हैं। ऐसी घोर साम्प्रदायिक प्रवृत्ति के कारण बिहार ही नहीं पूरा देश संकट में घिर सकता है।
कल्पना कीजिए कि यदि राजग और महागठबंधन दोनों में से किसी को भी इन चुनावों में बहुमत न मिलता और दो-चार सीटों की कमी रह जाती, तो यह ओवैसी अपने पाँच विधायकों का समर्थन अपनी शर्तों पर देकर किसी भी पक्ष की सरकार बनवा देता और फिर मनमानी करता। बिहार और पूरा देश इस ब्लैकमेल की राजनीति से बाल-बाल बच गया, यह ईश्वर की कृपा ही मानिए।
यदि हमें भविष्य में ऐसी संभावनाओं से बचना है तो आज से ही कठोर कार्यवाही करना प्रारम्भ कर देना चाहिए। इसके लिए हमें दो कार्य प्रमुख रूप से करने पड़ेंगे-
1. सभी नागरिकों की जाँच करके उनके मूल स्थान का पता लगाना। यदि वे घुसपैठियों हों, तो उनका वोटर कार्ड और राशन कार्ड आदि रद्द करके उन्हें देश से बाहर निकालना।
2. नागरिकों विशेषकर मुस्लिमों द्वारा एक से अधिक विवाह करने और दो से अधिक बच्चे पैदा करने पर कठोर प्रतिबंध लगाना। जो ऐसा करें, उनकी जबरन नसबन्दी करके कम से कम 10 वर्ष के लिए जेल में डाल देना चाहिए।
यदि हमें अपने देश को सुरक्षित रखना है तो हम इस मामले की उपेक्षा नहीं कर सकते। हमें कठोर कार्यवाही करनी ही होगी। यह कार्य जितनी जल्दी प्रारम्भ हो, उतना ही अच्छा रहेगा।
— डाॅ विजय कुमार सिंघल
कार्तिक शु 7, सं 2077 वि (21 नवम्बर 2020)