कविता

जिंदगी की दहलीज

जिंदगी की
दहलीज पर
खड़ा होकर
एक दिन उम्र ने
तलाशी ली
तजुर्बे की जेब से
जो बरामद हुआ
वह लम्हे थे
कुछ ग़म के थे
कुछ नम से थे
कुछ टूटे हुए थे
जो सही सलामत थे
वह बचपन के थे ।
— मनोज शाह ‘मानस’

मनोज शाह 'मानस'

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