कविता जिंदगी की दहलीज मनोज शाह 'मानस' 22/11/2020 जिंदगी की दहलीज पर खड़ा होकर एक दिन उम्र ने तलाशी ली तजुर्बे की जेब से जो बरामद हुआ वह लम्हे थे कुछ ग़म के थे कुछ नम से थे कुछ टूटे हुए थे जो सही सलामत थे वह बचपन के थे । — मनोज शाह ‘मानस’