लघुकथा

ठूंठ

हम दूध गर्म करते हैं, तो अन्य लाम करते हुए भी सारा ध्यान दूध में ही रहता है, कहीं उबलकर गिर न जाए. बड़ों ने डरा रखा है- ”दूध उबलना अपशकुन होता है.”

जानते भी हैं कि बड़ों ने यह डर किसलिए बिठा रखा है! एक तो दूध की बरबादी होती है, फिर दुबारा लाना पड़ेगा. इसके अतिरिक्त गैस-चूल्हे और स्लैब की सफाई करने में समय की और बरबादी! सारा दिन मन भी बेचैन रहता है.

डरा कोरोना ने भी रखा है, पर हम ठूंठ बने हुए हैं. हमने नियम न मानने की ठान रखी है-

कोरोना शुरु होते ही सरकार ने चेतावनी देना शुरु किया-
घर में रहिए सुरक्षित रहिए
मास्क पहनिए, खुद भी बचिए और दूसरों को भी बचाइए
दो गज दूरी बहुत है जरूरी
आत्मबल जागा हर संकट भागा

पर हम घर में क्यों रहेंगे, सुरक्षित क्यों रहेंगे. हम ठूंठ जो हैं!
हम मास्क नहीं पहनेंगे, बचना-बचाना जाए भाड़ में. हम ठूंठ जो हैं!
हम दो गज दूरी क्यों रखें, यह नहीं है जरूरी. हम ठूंठ जो हैं!
भला आत्मबल जगाने से भी कहीं संकट भागा है! हम ठूंठ जो हैं!

हर अच्छी चीज न मानने की तरह मास्क न पहनने के हमारे पास अनेक बहाने भी हैं-
”हमने तो पहना था, पता नहीं कहां गिर गया?”
”हमने तो पहना था, किसी बच्चे ने खींच दिया.”
”मुझे अमरूद खाना था, मास्क लगाकर कैसे खाऊं?”
”त्योहार तो मनाने ही हैं, भीड़-भड़क्का भी चलेगा.”
”पटाखे अब न जलाए तो कब जलाएंगे? प्रदूषण होता है तो होने दो!”
हम नहीं मानेंगे, हम ठूंठ जो हैं!

अब कोरोना पकड़ से बाहर जा रहा है तो जुर्माना भी पकड़ से बाहर जा रहा है. अब दीजिए 2000 रुपये जुर्माना! और ठूंठ बनिए! अब-

”सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करने पर भी लगेगा जुर्माना

सार्वजनिक स्थानों पर पान, गुटखा आदि खाने पर भी 2000 रुपये जुर्माना देना होगा

मास्क न पहनने पर बढ़ाया गया था 4 गुना जुर्माना”

और देखिए-
”नहीं पहना था मास्क, पुलिस आई और हथकड़ी पहनाकर महिला को ले गई”
यह घटना अमेरिका की है. न कोई अपील, न हील-हुज्जत! कोरोना से बचना-बचाना जो है! फिर न कहना! हथकड़ी क्यों लगाई?

अब शायद यही बाकी रह गया है! हम ठूंठ जो हैं!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “ठूंठ

  • लीला तिवानी

    दूसरी लहर के साथ कोरोना एक बार फिर विकराल रूप धारण कर रहा है। कई राज्यों में स्थितियां नियंत्रण से बाहर होती जा रही हैं। देश के कई राज्यों में एक बार फिर लॉकडाउन लग गया है। तो कहीं लॉकडाउन लगाने की तैयारी चल रही है। यह स्थिति सिर्फ भारत में ही नहीं है बल्कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर को देखते हुए दुनिया के कई देश फिर से लॉकडाउन का सहारा ले रहे हैं। ताकि इस वायरस को कम से कम समय में सीमित किया जा सके।

  • लीला तिवानी

    किसी पेड़ को काट कर गिराने के बाद जो तने और जड़ का हिस्सा बचा रह जाता है उसे ठूंठ कहते हैं। ठूंठ पर आपको किसी पेड़ की उम्र को परिभाषित करने वाले वलय या छल्ले दिख सकते हैं। इन छल्लों का अध्ययन वृक्षवलय कालक्रम के नाम से जाना जाता है। ठूंठ न हिलता-डुलता है, न पनपता है. दूसरी लहर के साथ कोरोना एक बार फिर विकराल रूप धारण कर रहा है। कई राज्यों में स्थितियां नियंत्रण से बाहर होती जा रही हैं।

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