ग़ज़ल
जुबाँ-जुबाँ की साला गाली।
दीवारें ज्यों आला वाली।।
खोखल करता साला घर को,
मिश्री-सी मधुबाला साली।
सोचे बिना जुबाँ पर बसता,
जुबाँ न होती ताला वाली।
पत्नी का कहलाता भाई,
जीभ नुकीली भाला वाली।
क़ानूनन वह भाई जैसा,
बहता प्रेम – पनाला खाली।
जीजाजी के घुटने छूता,
जीजी ने गलमाला डाली।
‘शुभम’ सार से हीन सदा ही,
फल की ढेरी पाला वाली।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’