डॉ. लक्ष्मी नारायण ‘सुधांशु’
हिंदी साहित्य में डॉ. नगेन्द्र के बाद ‘काव्य में अभिव्यंजनावाद’ को समृद्ध करनेवाले और कोई समालोचक हैं, तो वह है– डॉ. लक्ष्मी नारायण सिंह ‘सुधांशु’ । मूल नाम डॉ. लक्ष्मी नारायण सिंह, फिर ‘सुधांशु’ उपनाम के बाद सीधे डॉ. लक्ष्मी नारायण ‘सुधांशु’ हो गए !
पूर्णिया के इस लाल ने कई आलोचनाओं पर कार्य किए, मैंने उनकी ‘काव्य में उर्मिला-विषयक उदासीनता’ को गहराई से पढ़ा है । डॉ. सुधांशु जी स्वतंत्रता सेनानी भी थे । पूर्णिया का ‘कला भवन’ बनने में उनके अवदान भी शामिल हैं । ये प्रखर राजनेता भी थे ।
बिहार विधान सभा के दूसरे विधान सभाध्यक्ष भी रहे । आज सुधांशु जी नहीं है, किन्तु उनके पुत्र डॉ. पद्म नारायण सिंह उनके विरासत के उत्तराधिकारी हैं । कहते हैं, फणीश्वरनाथ रेणु के प्रखर आलोचक थे वे !