मेरा मन
अश्वमेध यज्ञ के अश्व समान,
निरन्तर दौड़ता है मेरा मन।
किन विषयों पे लिखूं
और किन को छोड़ूं
संभ्रमित रहती है
… मेरी कलम ।
कभी सोचती हूं,
कुछ नायाब लिखूं
जो लिखा न हो किसी ने
वो ख़्याल लिखूं ।
यादों पे लिखूं, वादों पे लिखूं
या अनसुनी, बिखरी सी
फरियादों पे लिखूं।
पर विषय नहीं मिलते,
कुछ लिखने को मुझे…
पतझड़ से बिखरे ख्वाबों के सिवा
सहेजने चली थी जिनको मैं
उन अरमानों की, यादों के सिवा।
क्या लिखूं ?
और मैं कैसे लिखूं,
घिसी पिटी बातों का दोहराव।
शायद ही समझेगा कोई,
मेरे सूने इस मन का भाव।
यह सोच कर ही,
मेरा हाथ कलम से,
दूर कहीं हट जाता है
और…
कलम, मुझमें और ख्यालों में
बिखराव सा आ जाता है,
लिखा मुझसे न जाता है।।
अंजु गुप्ता