गजल
बच्चे अब स्कूल को जाते हैं मेरे
सन्नाटा सा दिन भर घर में रहता है|
घर का काम पढाना सम्भालना मुझे ,
पति तो ड्यूटी के बाद बिस्तर में रहता है |
अधूरेपन की चिन्ता उसे क्यो हो भला
रातदिन पहरा जिनका सफ़र में रहता है|
शौहर का मिज़ाज आशिकाना है मेरे ,
सारा ध्यान पढते शायरी खबर में रहता है |
बच के पढता है छुपे से सबकी आँखों से
वो क्या जाने मेरी नज़र में रहता है|
घर में पैसे की किल्लत है जानकर भी,
उसका आलसीपन नौकरी के असर में रहता है |
बस मेरे दर्द पर मत जाना कभी तुम भी,
हमारे सोच का असर बस मंजर में रहता है |
दिन-रात के तकरार में हमारा वार्तालाप होता,
हर बात में तेरा मेरा नाम खबर में रहता है|
— रेखा मोहन