चाय पर वार्ता
पास बैठो दो पल
चुस्कियां लो
गरम गरम चाय की
दो तुम कहो
दो हम कहें
बात अपने अपने
दिलों की
जो मंद पड़ चुकी है
आग रिश्तों की
चलो उन्हें एकबार
फिर गर्म करते हैं
दिलों की रंजिशों को
अब चलो
विराम देते हैं
जिंदगी बहुत लंबी है
कब तक रंजिशों
के बोझ को ढोएं हम
चलो आज बैठो
मिलकर
इसका अंत करते है