छंद- हरिगीतिका
छाया हुआ अपनों में मिला ,भक्ति विभोर उत्सव छठी
भुला दिखा हर मनवा खोज, ढूढे दिखा संचालिका
सूरज दिखे चाहत सी बढ़ी ,जिनके बिना हम नित ढले ।
उनकी रश्मि पाने के लिए , सभी दिनकर के आराधिका।।
अपनी लग्न में सारे मग्न , मनचाही किनारें भरे ।
मन ध्यान की पिपासा दिनकर, तलाश भरी मन साधिका ।।
सुता युवती सजी आई तके, मेहँदी लगी हाथों भली
अपनों निकट में आते कहे, माँ कब से बनी याचिका.
बरसता थमी पर , उत्सव सा,दिखा सा सूरज छठी का ।
झूला मनवा हंसी ले थम ,पाया सब बने सेविका ।।
— रेखा मोहन