मेधावी छात्र रजिन्नर बाबू
एक छात्र, जो जबतक पढ़ते रहा…. प्रथम कक्षा से लेकर यूनिवर्सिटी और ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि तक न केवल प्रथम श्रेणियोत्तीर्णरहे, अपितु जिन – जिन संस्थानों से अध्ययन किया, ‘टॉप मोस्ट’ रहे । ‘भोजपुरी’ टोन का उस छात्र की पकड़ कालांतर में कई भाषाओं में हो गई । कहा जाता है, उस छात्र के बारे में कि वे अपने परीक्षकों से भी काफी मेधावी थे और उनके प्राप्तांक जो होते थे, वह Full Marks से प्रायः ही 10 से 20 फ़ीसदी ज्यादा ही होते थे ।
एक सुनी – सुनाई सुना रहा हूँ…. एकबार स्नातक परीक्षा के क्रम में परीक्षा तिथि से पूर्व रात्रि में उनके प्रतिद्वंद्वी / प्रतिद्वन्दी छात्रों ने उसे बहलाकर रातभर ‘कॉल गर्ल’ के पास छोड़ दिया, किन्तु ‘कॉल गर्ल’ भी उनकी प्रतिभा से कायल हो, उन्हें अपने इन ‘काम’ कार्यों में घसीटी नहीं और सुबह वह उनींदी आँखों से परीक्षा दिए और उस पेपर में भी टॉप किये ! किन्तु वे बुरे मित्रों की परीक्षा में भी खरा सोना होकर बाहर निकले ।
सुनी – सुनाई एक बात और…. वे गलत सोहबत में पर छुटपन से ही तम्बाखू सेवन (खैनी) कर लिया करते थे, जो उनकी नियमित आदत थी । एक दिन कक्षा में ही खैनी तैयार करने हेतु चूना नहीं मिलने पर स्कूल की दीवार पर ताज़ातरीन चूना की पेंटिंग में से चूना खुरच कर तब खैनी तैयार कर सेवन किये । ….. यह छात्र हैं ‘रजिन्नर बाबू’ । बड़े कृषक – ज़मींदार के पुत्र, गंधी महातमा के आह्वान पर लाखों टके के वकालती छोड़ देश की आज़ादी हेतु संलग्न हो गए… भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हुए, तो संविधान सभा के प्रथम पूर्णकालिक अध्यक्ष, प्रथम कैबिनेट में कृषि एवं खाद्य मंत्री सहित संविधान लागू होने पर यह देशरत्न देश के पहले राष्ट्रपति हुए ।
तब बिहार की इस प्रतिभा को आज़ादी के बाद भी देशभर ने देखा, क्योंकि वहाँ भी किसी ‘बिल’ को लेकर पहले ‘डिस्कशन’ पर जोड़ देते रहे, जो कि प्रथम प्रधानमंत्री से न पटने का कारण भी रहा । रॉयल ‘राष्ट्रपति भवन’ में रहनेवाले प्रथम साधु / साधू अपने सेवाकाल के बाद भी पटना के सदाकत आश्रम में साधु / साधू रूप में आजन्म रहे और पहले राजनेता रहे, जो वेतन के रूप में प्रतिमाह 1 रुपया ही लिये ।