मुक्तक
कोहरा फैलती गर्द हट जाएगी
हर घड़ी बढ़ रही धुंध छँट जाएगी
दीप जिस पल हृदय में जला आस का
तीरगी रास्तों की सिमट जाएगी
धर्म ईमान श्रृद्धा वफ़ा की तरह
प्राणमय देह में चेतना की तरह
है तमन्ना रहें एक दूजे में हम
देह में देह की आत्मा की तरह
जब जहाँ जिस तरह आजमाना मुझे
भूल पाओ अगर भूलजाना मुझे
मत सजाना भले होठ पर गीत सा
बस नज़र से कभी मत गिराना मुझे
सत्य सदभावना सौम्यता सादगी
प्रेम करुणा दया आस्था बंदगी
पा गये जिस बशर के हृदय में जगह
शांति सुख से जिएगा सदा ज़िन्दगी
— सतीश बंसल