सामाजिक

उन वीर जवानों को शत -शत नमन

सत्य तो यही है की आज हम सब एक खुशाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं ,तो इसका श्रेय केवल उन वीर जवानों को जाता है | जो सीमा पर अपने देश की रक्षा हेतु खड़े हैं | “तुम स्वार्थ की बात करते हो, उन्होंने तो अपना सर्वस्व भारत माता के नाम कर दिया है | तुम माया की बात करते हो ,उनका तो धन ही भारत की सेवा है | तुम मोह की बात करते हो ,उनका तो प्रेम ही भारत के प्रति अपना कर्तव्य है” | वो देश के लिए अपने प्राणों की आहुति तक दे देते है | सन्यासी मानव जाति की कल्याण हेतु तप करते हैं | और जवान मानव जाति की रक्षा हेतु यह कठिन तप करते हैं |

सबसे बड़ा श्रेय जाता है उनके परिवार को जो अपनी संतान को इस शुभ व महान कार्य के लिए स्वीकृति देते हैं | वह अपने सीने पर पत्थर रख अपनी संतान को विदाई देते हैं | इस पूरे ब्रह्मांड में ऐसा कोई जीव नहीं है जिन्हें अपनी संतान प्यारी ना हो | एक हल्की सी चोट पर भी एक मां का जी मचल उठता है | पर वही मां उसे भारत माता की रक्षा के लिए बॉर्डर पर भेज देती है | उनके परिवार को अंदाजा तक नहीं हो ता कि हर वर्ष उनकी संतान उन्हें मिलने भी आएगी या नहीं | वह प्रत्येक दिन उनके घर का चिराग न बुझ जाए जाए यही कामना करते हैं | पूजनीय है वह माता पिता जिन्हें अपनी सेवा से ज्यादा देश की सेवा प्रिय है |

कितना कठिन होता है अपने जीवन के सारे सुख चैन त्याग कर उस कड़कती धूप में अपनी जान जोखिम पर डाल देश की सेवा के लिए लड़ना | वह अपने सांसारिक जीवन का भी पूर्णता से लाभ नहीं उठा सकते | वे नाही अपनी पत्नी व अपने बच्चों के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर पाते हैं | वे छुट्टियों में घर तो अवश्य आते हैं परंतु भारत मां का बुलावा कब आ जाए यह उन्हें भी पता नहीं रहता | सांसारिक सुख तक उनके जीवन में नहीं है | जब कभी भी सीमा पर युद्ध होता है | कहीं सारी सैनिक शहीद हो जाते हैं और जब घर पर उन वीर जवानों का शव आता है | वह पीड़ा हमारे विचारों से भी परे है | उन माता-पिता पर क्या बीतती होगी ,वो तो अपने बेटे के साथ आनंदमई जीवन की कामना करते थे | उस पत्नी पर क्या बीतती होगी ,जो अपने शहीद पति के शव को अपने सामने मौजूद दख रोती होगी चीखती होगी, चिल्लाती होगी | उसके पैरों तले से जमीन ही खिसक जाती होगी | उस बहन पर क्या बीतती होगी जिसने अपने भाई की कलाई पर रक्षा डोर बांधी थी और वह आज छूट गई | यह सारी पीड़ा का अनुमान लगाना भी बहुत कठिन है | उनका परिवार इतनी पीड़ा भुगतने के बावजूद भी कहता है की उन्हें गर्व है ऐसी संतान पर ,ऐसी औलाद पर जिसने बड़ी ही निष्ठा से देश की सेवा की | और अपने प्राणों की आहुति तक दे दी | धन्य है ऐसे माता पिता और धन्य है उनकी संतान |

मेरे विचार से यह तप तो उस सन्यास से भी बड़ा है | इस तप में निस्वार्थ भक्ति है | इस तप में देश की रक्षा की शक्ति है | इस तप में भारत मां के प्रति अपने कर्तव्य की निष्ठा है | वे हर सम्मान के हकदार हैं | हर किसी के मन में उनके प्रति स्नेह व सम्मान अवश्य होना अति आवश्यक है | आज उन्हीं के कारण हर व्यक्ति चैन से अपनी कुटिया में सुखी व स्वस्थ जीवन व्यतीत कर पाता है | हम सदैव “जय जवान जय किसान” यह नारा तो अवश्य लगाते हैं | परंतु अब समय आ गया है इस भक्ति को अपने मन में जागृत करने का | मेरा आप सभी से यही पुणे निवेदन है कि, किसी भी व्यक्ति को देखें जो देश की सेवा के हित के लिए कार्यकर्ता हो उन्हें सम्मान अवश्य दें | वे यदि आपको बस, ट्रेन या कहीं भी मिले तो उनकी सहायता करें | उनसे अपनापन जताए | यदि हम भी उन्हें अपना सदस्य मांगेंगे तो उन्हें अपने परिवार से बिछड़ने का ज्यादा गम नहीं होगा | उन्हें आवश्यकता है तो केवल हमारे स्नेह और प्रेम की इसीलिए हर कोई उच्च विचार रखें | हर एक व्यक्ति का सहारा बने |

जय हिंद

— रमिला राजपुरोहित

रमिला राजपुरोहित

रमीला कन्हैयालाल राजपुरोहित बी.ए. छात्रा उम्र-22 गोवा