गीतिका/ग़ज़ल

दीवारें बोलती

दौर ए तनहाईयों में कोई सहारा होता
दीवारें बोलती और ज़िक्र तुम्हारा होता
उदासियों का है आलम शबे तनहाई में
खुशी के लमहें सा कोई तो शरारा होता
ख़्वाब की तरह टूटने लगा है दिल अब तो
काश उम्मीद का कोई तो सितारा होता
ख़बर है अपने रहगुज़र में यूं अकेले हैं
किसी के साथ में चलने का इशारा होता
दिल की धडकन भी ऐसी ज़ख़्मी है
लबों पे फिर भी तबस्सुम का गुज़ारा होता
यादें भी थक के हो गई है गुमशुदा जैसी
तनहां तनहाईयों का यूं न नज़ारा होता
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती ” 

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है