नवाबी प्रेमचंद
क्या प्रेमचंद डरपोक थे ? नवाब की राय नहीं बनी, धनपत की राय नहीं बनी, तो प्रेम का मुंशी (चंड) बन गए ! यह सच है, प्रेमचंद कथा सम्राट थे, तो उपन्यास सम्राट भी ! यह भी सच है, इस पोपले गालवाले शख़्स ने हिंदी ही नहीं, सम्पूर्ण संसार को ‘गोदान’ दिया, तो 300 से अधिक कहानियां भी । वे अंग्रेजों से भागते फिरे, छद्मता ऐसी की कभी धराये नहीं और जेल नहीं गए । पोस्टमास्टर भी थे, जिसके कारण उसे मुंशी भी कहा जाता है । स्कूल में दादागिरी पद (इंस्पेक्टर) पर भी रहे । जो भी हो, सामंत के इस मुंशी ने आजीवन फकीरी में गुजारे और तीन शादियाँ की ! वे न प्रो. मेहता बन सके, न ही होरी ही ! मेहता और होरी के बीच झूलते रह गए…. मालती पाने की लालसा में धनिया में अटक गए !
एक व्यक्ति जिनका नाम ‘नवाब’ रहा, ‘धनपत’ रहा, परंतु ताज़िन्दगी कष्टों, अभावों में जीते रहे, जबकि वे उन कालखण्डों में 20 रुपये मासिक की सरकारी नौकरी भी करते थे, हो सकता दोस्तबाजी में पैसे उड़ जाते होंगे ! तीन पत्नियाँ भी थी, किन्तु एक के बाद एक ! अभावों में भी वे ‘प्रेम’ बाँचते रहे, जिंदगी भर……. दर्जनों उपन्यास, 300 से ऊपर कहानियां, थोड़े लेख और कविताएं भी, बावजूद उन्हें किन कारणों से मुंशी कहा जाता रहा…. पता नहीं, लेकिन जो भी कारण रहे हों, वे आज के टोनिजिबल हिंदी के ‘मुंशी’ अवश्य रहे । गुलाम भारत में जन्म लेकर और अंग्रेजों के भय और डाँट से ‘नवाब’ और ‘धनपत’ से दूर हो गए, फिर अपने वतन को सोज़ नहीं पाए… अंग्रेजी सत्ता में इस भारतीय लेखक का जेल नहीं जाना कइयों को यह सालता है कि ये अंग्रेजों के पिट्ठू तो नहीं थे ! …किन्तु वे सवर्ण कायस्थ होकर गरीब मज़दूर थे, तभी तो उन्होंने लिखा– “जिसदिन मैं ना लिखूँ, उसदिन मुझे रोटी खाने का अधिकार नहीं है ।”