पूस का दिन
आज एन्टी-प्रेमचंद जैसे
कथाकार की जरूरत है,
जो ‘पूस का दिन’ लिखे !
पूस के इन दिनों
जो कड़ाके की ठंढ पड़ रही,
आज महसूस कर रहा हूँ !
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अगर बहुमत के अधिनियमों से
आपको परेशानी है,
तो जब आप बहुमत में आएं,
तो अधिनियम पलट डालिये….
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प्यार- एक ऐसा शब्द,
जिनका पहला वर्ण ही
आधा- अधूरा हो !
वो ताउम्र साथ चलने के लिए
पूर्ण कैसे हो सकती है ?
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हम आईना नहीं देखते,
तो क्या हुआ ?
लेकिन एक वो ही है,
जो सच के साथ है !
बाकी सब भ्रामक है
यानी सब्जबाग लिए !
××××
आज यहाँ कड़ाके की ठंढ है,
मेरे एक मित्र ने कहा-
मुझे सच में एक
‘हीटर’ की जरूरत है,
जो वास्तव में मेरे पास
‘एक भी’ नहीं है !