अखबार के पीछे
किरदार कई हैं उसी, किरदार के पीछे।
नफरत छिपाये रखते हैं,जो प्यार के पीछे।
माना कि चमचमाता है,विकास चहुँ ओर।
एक दर्द को भी देखिए,दीवार के पीछे।
खबरें नहीं छपती है बिना,उनकी इजाजत के,
सबको पता है कौन है,अखबार के पीछे।
है डर सभी को खाइयों में गिरने का मगर,
भेड़ों की तरह चल रहे हैं ,सरदार के पीछे।
छत से कभी खिड़की से,सभी उसको निहारें,
पागल हैं बहुत लोग क्यों,दीदार के पीछे।
— बिनोद बेगाना