लघुकथा

भीगा-भीगा चांद

हितेश इंजीनियर बनकर बहुत खुश था. सबकी बधाइयों और शुभकामनाओं ने उसकी खुशी में चार चांद लगा दिए थे. स्मृतियों ने उसे चांदराम के दरीचे में पहुंचा दिया था.

”बच्चे यहां क्यों खड़े हो.” कई साल पहले पी.टी. शिक्षक चांदराम ने उससे पूछा था.

”प्रणाम सर, पी.टी. करते बच्चों को देखकर मुझे बहुत खुशी होती है, यह मेरा रोज का शौक है.” उसने कहा था.

”पढ़ने का शौक नहीं है?”

”है न सर! मैं डॉ. एम. विश्वेश्वरैया की तरह इंजीनियर बनना चाहता हूं.” हितेश की आंखों की चमक देखने लायक थी.

”डॉ. एम. विश्वेश्वरैया की कथा तुम्हें कैसे पता है?” चांदराम हैरान थे.

”सर आपने ही तो सबको सुनाई थी! मैंने भी सुन ली और अब मैं खुद को डॉ. एम. विश्वेश्वरैया जैसा प्रतिभाशाली और सूझबूझ वाला समझने लग गया हूं. डॉ. एम. विश्वेश्वरैया ने चलती रेलगाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ जाने के आभास से एक बड़े खतरे को टाल दिया था, मैं भी ऐसा ही कुछ करना-बनना चाहता हूं. पर–” कुछ कहते-कहते वह रुक गया.

”पर क्या?” चांदराम ने पूछा था

”पर मैं बहुत गरीब हूं, पढ़ नहीं सकता.”

”अगर तुम्हारे जैसी लगन वाला बच्चा नहीं पढ़ सकता, तो दुनिया का कोई बच्चा नहीं पढ़ सकता.” उसी दिन चांदराम ने हितेश के माता-पिता से उसको मांग लिया था. उसके बाद तो हितेश को अमीरी-गरीबी कुछ नहीं दिखाई दी, बस अपना सपना ही दिखाई देता था.

”चांदराम तो अब चांद के पास चले गए हैं, पर मेरे सपने को चमका गए हैं.” दो अश्रुकण छ्लक पड़े थे.

धरती पर उतर आया चांद भीगा-भीगा लग रहा था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “भीगा-भीगा चांद

  • लीला तिवानी

    प्रतिभा के साथ मन में लगन हो, तो हितेश का हित करने वाले चांदराम जैसे हितैषी मिल ही जाते हैं. फिर प्रतिभा को प्रस्फुटित होने से कोई रोक नहीं सकता.

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