जब कभी मन में व्यथा हो
जब कभी मन में व्यथा हो
आँसूओं का संग जुदा हो
बात मन की कह सको ना
तब मुझे तुम याद करना|
मुझसे तुम संवाद करना
व्यक्त सब जज्बात करना
मैं सुनूँगा सब धीर रखकर
और मार्ग भी प्रशस्त करूँगा|
जानता हूँ बहुत कठिन यह
गैर से निज जज्बात कहना
पीर जब नासूर बनने लगे
बेहतर होता उपचार करना|
है यही बस वश में अपने
दीप बन जल सकूँ तम मिटाऊँ
खुद की खातिर जी चुका हूँ
काम किसी के अब मैं आऊँ|
— अ कीर्ति वर्द्धन
बेहतरीन सृजन सर। हृदयस्पर्शी रचना है।
मन की व्यथा सुनने वाले तो कई मिल जाते हैं हमें इस जीवन में। किन्तु वास्तविक रूप में हृदय से समझने वाले बहुत कम ही मिलते हैं। यदि ऐसा कोई व्यक्ति मिलता है हमें अपने जीवन में तो उसकी सदा क़द्र करनी चाहिए।