कहानी

कहानी – माँ के प्रेम का चमत्कार 

कुंती के विवाह को चार साल हो चुके थे, पर उसके कोई संतान न थी। उसके ससुराल के लोग उससे बहुत नाराज रहते थे। वह कहती थी कि जब तक भगवान की मर्जी न हो, तब तक कुछ नहीं होता है।
दिन बीतते जा रहे थे। सात साल हो गए विवाह को लेकिन गोद नहीं भरी। हार कर कुंती और उसका पति कमलेश डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर ने कहा सब ठीक हो जायेगा। डॉक्टर ने कुंती को कुछ दवाइयां खाने के लिए दी। कुंती ने भी उनका नियमित सेवन किया।
दो माह बाद कुंती के पैर भारी हुए। पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। परिवार के सभी लोग कुंती का बहुत ध्यान रखने लगे। कुंती और कमलेश की तो खुशी का ठिकाना न था।
जब चार माह बाद डॉक्टर को दिखाया गया। सोनोग्राफी की गई। तब डॉक्टर ने कहा कि यह बच्चा कुछ बीमारियों के साथ पैदा होगा, इसलिए इस बच्चे को जन्म न देने में ही आप दोनों की भलाई है।
यह बात सुनकर फिर से पूरे परिवार में उदासी के काले बादल छा गए। किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। पूरे परिवार की खुशियों पर ग्रहण लग चुका था। काली छाया मंडरा रही थी।
दूसरे डॉक्टरों से भी संपर्क किया गया। पुनः चैक किया गया परंतु सभी ने यही जवाब दिया कि यह बच्चा कुछ शारीरिक कमियों के साथ पैदा होगा। जिसे आप लोगों को जीवन भर संभालना होगा। उसके ठीक होने के चांस बहुत कम हैं।
अंत में परिवार के सभी सदस्यों ने यह निर्णय लिया कि यह बच्चा न रखा जाए, लेकिन कुंती उस बच्चे को जन्म देने के लिए अड़ी हुई थी। उसने कहा – अगर मेरे जीवन में उम्र भर अपने बच्चे की सेवा लिखी है तो मैं खुशी से करुंगी।
देखते ही देखते नौ माह बीत गए। कुंती ने पूर्णिमा के दिन चांद के समान सुंदर बालक को जन्म दिया। बच्चा बहुत ही सुंदर व स्वस्थ था। परिवार के सभी लोग बहुत खुश थे।
सभी लोग कह रहे थे कि डॉक्टर से बड़ा ईश्वर है। बच्चे में कोई कमी नहीं थी। बच्चा दिनोंदिन अपनी सुंदरता बिखेरता हुआ बढ़ रहा था। वह बच्चा सभी को कृष्ण भगवान का रूप लगता था। उसकी मनमोहक छवि को देखते हुए कुंती ने उसका नाम कन्हैया रख दिया।
घर भर में खुशियां मनाई गईं। पूरे मुहल्ले में लड्डू बांटे गए। लगभग नौ साल बाद कमलेश और कुंती के घर में कन्हैया ने जन्म लिया था। पास- पड़ौस के लोग भी कन्हैया की मनमोहक छवि को देखकर दंग रह जाते थे।
अब कन्हैया दस माह का हो चुका था। उसकी आँखें बहुत बड़ी बड़ी व निराली थीं, लेकिन कन्हैया किसी के बुलाने पर उसे देखकर प्रतिक्रिया नहीं देता था। उसके सामने खिलौने आदि किसी भी प्रकार की कोई वस्तु रखने पर ही नहीं उठाता था। माँ को भी नहीं पहचानता था।
अब कुंती व परिवार के सभी लोगों को कुछ चिंता हुई। तुरंत डॉक्टर को दिखाया गया। चैकअप के दौरान पता चला कि कन्हैया जन्मांध है। वह देख नहीं सकता है। बहुत से डॉक्टरों को दिखाया गया पर सभी ने निराशा प्रकट की। सभी डॉक्टरों का एक ही कहना था कि अभी हम कुछ नहीं कह सकते हैं। अट्ठारह साल का होने के बाद ही कुछ हो सकता।
कमलेश के परिवार की खुशियों पर फिर से ग्रहण लग चुका था। सभी लोग उदास होकर सोच रहे थे कि इतने सालों तक इसकी देखभाल कैसे होगी।
कुंती ने सबसे कहा- आप लोग चिंतित न हो। यह मेरा बच्चा है। मेरा खून है। मैं जिंदगी भर इसकी सेवा करूंगी।
अब कुंती की दिनचर्या कन्हैया के साथ ही शुरू होती और कन्हैया के साथ ही समाप्त होती थी।
समय ने करवट ली। देखते ही देखते कन्हैया चार साल का हो गया। अब उसे स्कूल भेजना था। देखने में कन्हैया अन्य सभी बच्चों जैसा सामान्य व सुंदर था। बस दृष्टि से हीन था। अब कन्हैया के लिए स्कूल की तलाश की गई। सामान्य स्कूलों में उसे दाखिला नहीं मिला क्योंकि वह कक्षा में देख नहीं सकेगा।
कुंती के घर से दस किलोमीटर दूर दृष्टि हीन बच्चों के स्कूल में उसका दाखिला करवाया गया। कुंती कन्हैया की आँखें बनकर सदैव उसके साथ रहती थी।
वह कन्हैया के साथ पांच घंटे स्कूल में रहती फिर छुट्टी होने पर उसे गोद में लेकर पैदल घर आती थी। घर में भी उसका पूरा ध्यान रखती थी। एक पल के लिए भी आँखों से ओझल नहीं होने देती थी।
समय पंख लगा कर उड़ रहा था। अब कन्हैया दस वर्ष का हो चुका था पर कुंती की दिनचर्या में कोई फर्क नहीं आया था। कन्हैया की बुद्धि का विकास बहुत तीव्र गति से हो रहा था। वह देख नहीं सकता था पर स्पर्श द्वारा हर वस्तु का नाम तक बता देता था। जबकि उसने कभी उस वस्तु नहीं देखा था। यह सब किसी चमत्कार से कम नहीं था।
वैज्ञानिक व डॉक्टर भी उसकी इस प्रतिभा से अचंभित थे। वह स्पर्श करके पेड़ों व फूलों के नाम बता सकता था। फलों व सब्जियों के नाम बता देता था। यह सब उसने स्कूल में नहीं सीखा था। बिना देखे 10-15 फुट की दूरी से सड़क, बस, ट्रक, कार आदि को पहचान लेता था।
डॉक्टरों ने पुनः उसकी आँखों का चैकअप किया तो पता चला की उसकी आँखों में एक प्रतिशत भी रोशनी नहीं है। अब कन्हैया पंद्रह साल का हो गया था। वह बिना छड़ी की सहायता के अपना सब काम कर लेता था। अकेले स्कूल व बाजार भी चला जाता था।
कुंती अब निश्चिंत हो चुकी थी। ऐसा लगता था कि मानो कन्हैया को भगवान ने दिव्य दृष्टि प्रदान कर दी है। परिवार के वे लोग जो कन्हैया को जन्म देने के विरुद्ध थे। जिन्होंने कन्हैया को लावारिस छोड़ दिया था। अकेली मां ने जिसे अपने बलबूते पर पाल-पोस कर बड़ा किया। वे सब अब कन्हैया का बहुत ध्यान रखने लगे थे। उसे प्यार करने लगे थे।
कन्हैया पढ़ने में तो शुरू से ही कुशाग्र बुद्धि का था। उसने बीस वर्ष की अवस्था में एम.एस.सी भी कर लिया था। कन्हैया की आँखें हर समय कुछ खोजती रहती थीं। वह ईश्वर प्रदत्त दिव्य चक्षुओं से धरती आकाश सब कुछ देख सकता था।
डॉक्टर अचंभित थे कि वह कन्हैया जिसकी आँखों के लैंस जन्म से ही खराब हैं। जिससे लेशमात्र भी दिखाई नहीं देता है। वह सब कुछ कैसे बता देता है। डॉक्टरों के लिए यह एक शोध का विषय बन गया था।
कोई कहता ये ईश्वर का चमत्कार है, तो कोई भोली सी माँ के प्रेम का चमत्कार कहता था। अब कुंती के जीवन में बदलाव आ गया था। कन्हैया एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने लगा था। उसे किसी सहारे की आवश्यकता नहीं थी। वह अपना सब काम स्वयं करता था।
नौकरी के तीन महीने के अंदर ही उसने गाड़ी भी खरीद ली थी। वह स्वयं गाड़ी चलाकर अपने कार्यालय जाता था। अब माँ बेटे के जीवन में खुशियों की लहर उठने लगी थी। रविवार के दिन कन्हैया अपने माता-पिता को शहर घुमाने ले जाता था।
समय देखकर कुंती ने कन्हैया से विवाह के विषय में पूछा – तो कन्हैया ने माँ को अपनी असिस्टेंट सुधा के बारे में सब कुछ बता दिया। कुंती सुधा से मिलकर बहुत  खुश थी। सुधा बहुत ही समझदार सुशील व सुंदर लड़की थी। उसके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी थी। वह अपने एक रिश्तेदार के घर रहती थी।
अक्षय तृतीया के सुंदर मुहूर्त पर कुंती ने दोनों  का विवाह करवा दिया था। कुंती अपने बहू बेटे के साथ जीवन का आनंद ले रही थी।
उधर डॉक्टरों की एक पूरी टीम कन्हैया की आँखों पर शोध कार्य  करके हार चुकी थी। वे सब इस निर्णय पर पहुंचे थे कि  ये सब माँ के अद्भुत प्रेम का चमत्कार है।
ठीक ही कहा गया है कि माँ की सेवा व प्रेम में वो ताकत छिपी होती है। जिसके आगे भगवान भी झुकने को मजबूर हो जाते हैं।
— निशा नंदिनी भारतीय 

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]