कविता

ये किरणों का तेज

ये सूरज की किरणों का मुस्कुराना
वो गुजरा हुआ जमाना,।
एक एक किरण में है,
वो अहसास पुराना,
वो पहली किरण और आखिरी उम्मीद
कितना हसीन था वो पल और वो जमाना।
न सर्द हवाएँ महसूस होती थी
न जेठ का महीना,,
एक जैसा लगता था हर पल
जैसे उगते हुए सूरज का मुस्कुराना
कब दिन ढलता था,कब शाम होती थी,
वक्त गुजर गया पर वो अहसास
आज भी वैसा ही है पुराना।
ये सूरज की किरणों का तेज
वो हल्के से मुस्कुराना,
यादों के सहारे है सिर्फ ये जमाना।
वो बचपन और वो मस्ती में खिलखिलाना।

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)