हमारे शब्दों ने अनहदों के दायरे देखे हैं। चट्टानों से उत्तर कर सागर की गहराईयों को देखा है। आलोचकों के भंवर में अपने अस्तित्व को उतारा है। कभी तुम भी खुद के शब्दों में उतर कर देखो खुद के भंवर से निकल कर देखो ये भी एक हकीकत है अपने शब्दों की आलोचना करने की […]
Author: सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ
कविता
नारी की दास्ताँ सुन ऐ जिंदगी। हाले दिल बयाँ कर ले ऐ जिंदगी। भरी महफिल सजायें बयाँ कर गये। ये दिल की दास्ताँ तबाह कर गये।। जो चहकती थी अपने नूर लेकर। दस्तूरे जख्म ए बयाँ जान लेकर। कभी गुजरते थे राहों से तेरी राहें महसूस कर जिन्दगी मेरी। — सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ
वेदना
मिली नसीहत प्रेम भरी, सादगी से मैं निभाऊँ, वेदना के मोती भरे, इन्हें मैं कैसे सजाऊँ। भरी वसुधा वेदना से, लिख रही हूँ मन की कथा, चल पड़ी राह वेदों की, आज निकली दिल से प्रथा। — सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ
मन हरण घनाक्षरी
मंद सुगंध पवन, भरे आज प्रेम घन, सघन घनघोर में, व्यथा सुन लीजिए। भरी चित उलझन, प्रीत की कैसी लगन, साँवरे सुन ले जरा, प्रेम भर लीजिए। प्रेम ध्वनि कल -कल, भरी वसुधा कोमल, प्रीत के तीखे ये […]
सूर घनाक्षरी
गुरू की महिमा जगी, संत सभी हैं सुखाय, मन व्याकुल यूँ रहे, गुरु के शरणें जाय। जीवन की है ये व्यथा, गुरु कृपा मिल जाय, ज्ञान का सागर मिला, नैया ये पार हो जाय। गुरु बिना ज्ञान नहीं, इक राह मिल जाय, सब ज्ञानी होवे यहाँ, जीव सब तर जाय। वेदों से है ज्ञान मिला, […]
मनहरण घनाक्षरी
पुष्पवाटिका खिली है, मधुमास मदमस्त, विष्णु प्रिया खिल रही, तुलसी आँगन की। बसंत की ये बहारें, भर रही अब स्याही, अधरों पे कलम ने, कर लिया है कब्ज़ा। ऋतुराज का आलम, फिज़ाओं में कलियों में, कृष्ण की बाँसुरी बजी, अनुराग भरी है। सरसों भर रही है, पुष्प पुलकित हुए, भँवरे गुँजयमान, नृत्य कर रहे हैं। […]
माँ महागौरी की महिमा
में खड़ी हूँ दर पे तेरे कर ले तू साज श्रृंगार। आज गौर वर्ण माँ गौरी चन्द्रदीप्ति भरा संसार।। माँ तेरी महिमा का गुणगान है हर द्वार। माँ के चरणों में समर्पित है आज सारा परिवार।। माँ की ममता से भरा ये नवरात्रि का त्योहार। आज अष्टमी तिथि को माँ गौरी का अद्भुत श्रृंगार।। शिव […]
देश प्रेम की अमृत वर्षा
अश्कों में वो देश प्रेम की अमृत वर्षा आज भी है, जो सुनी थी कहानी देश प्रेम की। नयनों में वो नमीं आज भी है, जो बही थी नदियाँ खून की।। हृदय के घावों से आज भी, वो अमृत वर्षा बहती है, जो देखी थी तलवारें वीरों की। वादियों के घने कुहरे में भी थी […]
उठे जब भी कलम मेरी
उठे जब भी कलम मेरी अधरों पर कुछ विचार लिए। चल पड़ती हूँ तब में कुछ नयें अंदाज लिए।। सोचती है इक नयीं पहेली अंगुलियों की पनाह में। लिखती है नयीं कहानी एकान्त में।। उठे जब भी कलम भावनाओं के सागर में। डूब जाती है ये मेरी कलम स्याही के समन्दर में।। कभी अश्कों की […]
छंदमुक्त कविता
यामिनी की इस प्रहरी में तुम्हारा अहसास महसूस हो रहा है। जैसे धीरे- धीरे चाँद ढल रहा है ।। कुछ मीठा -मीठा दद॔ सता रहा है,। यादों की गठरी लिए, मन व्यथित हो रहा है,,।। व्यथा गाँठ कुछ ऐसी है,। तुम बहुत दूर हो मेरी इस यात्रा में, भटक रही हूँ, इस रजनी में, तुम्हारी […]