अब तो पांव लगे हैं जमने
लिखते-लिखते लिख डाले हैं
जीवन के कितने ही पन्ने
फिर भी जीवन अनसुलझा है
न जाने कितने हैं लिखने..।।
जीवन में हर कोण बनाकर
जीवन गणित लगाया है
फिर भी हैं सवाल कुछ बाकी
कैसे हल होंगे ये सपने..।।
दूर-दूर रह पास-पास रह
हर आभास किया जीवन में
नहीं समझना आसां है कुछ
किसे कहें ये ही अपने..।।
हर पथ पर था पथिक बना मैं
चला रास्ता जैसा भी था
कुछ सहपथिक बने मेरे भी
कुछ पीड़ा भी पड़े हैं सहने..।।
गिर-गिर कर फिर उठ जाना ही
मूल मंत्र जीवन में सीखा
मिला मुझे साहस ही इससे
अब तो पांव लगे हैं जमने..।।
अब तो पांव लगे हैं जमने..।।
— विजय कनौजिया