कविता

किसान 

किसान

हाथ की लकीरों से लड़ जाता है।

जब बंजर धरती पे,
अपनी मेहनत के हल से लकीरें खींच जाता है।
हाथ की लकीरों से लड़ जाता है।
कभी स्थितियों से कभी परिस्थितियों से,
दो- दो हाथ कर जाता है।
वो पालता है,पेट सबके।
खुद आधा पेट भर के,
मुनाफाखोरी के आगे,
हाथ -पैर जोड़ता रह जाता है।
हाथ की लकीरों से लड़ जाता है।
जो जीवन को जीवन देता है।
सबको अपनी मेहनत से ऊचाईयां देता है।
उसकी महानता को,अगर समझें होते।
कर्ज में डूबे किसान,फांसी पर यूं न चढ़ें होते।।
आज अनशन लेकर,सड़कों पर क्यों खड़े होते।
दीजिए सम्मान,उसे……जिस का हकदार है।
वह धरा पर,जीवन धरा का प्राण है।
डॉक्टर, इंजीनियर …..बनने से पहले,
जीवन देने वाला है।
अमृत सदृश रोटी हर रोज देने वाला है।।
— प्रीति शर्मा “असीम”

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- [email protected]