गुरू जी की चिन्ता
बड़ा या छोटा सभी के चेहरे पर चिन्ता की रेखाएं थी फिर गुरू जी तो कई जिम्मेदारियों को एक साथ निभा रहे थे अपनी अपने परिवार की अपने आस पड़ोस और अपने विद्यार्थियों की।जी हां बात ही कुछ ऐसी थी।बहत्तर साल में गुरू जी किसी युवा से कम फुर्तीले न थे सुबह जल्दी उठना दिनचर्या से निपट दण्ड बैठक योग व्यायाम आदि करना अब तक आदत में था।जहां इनसे बीस साल कम आयु के पोपले गाल और बेडौल बालों के मालिक बन गए।यह फिट होने के साथ हिट भी थे।हिट इसलिए कि कोई बीमारी अब तक पास न फटकी थी।
चेहरे पर चिन्ता व बेचैनी से चहल कदमी करते गुरू जी की यह दशा उनकी छोटी बेटी शेमुषी से छुप न सकी।उसने पूछ ही लिया पिताजी आखिर बात क्या है।आप आज इतना परेशान किसलिए ?
बेटी बात ही चिन्ता की है।मैंने अपने जीवन में कुछ होश संभालने के बाद 1961 से अब तक ग्यारह छोटी बड़ी महामारियों को आते-जाते देखा।पर आजकल जैसा डर बेचैनी कभी न हुई।
क्या बाप बेटी में बात चल रही है।कुछ हम भी तो जानें।पत्नी ने बीच में टोंकते हुए कहा,
ठीक है मेरी इतनी आयु ऐसे नहीं हुई।दुनियांदारी देखी है।भारत तो पूरा ही घूमकर देखा है।मैं अपनी बेटी से आजकल फैली कोरोना बीमारी के बारे में बात कर रहा था।गुरू जी ने अपनी श्रीमती को सन्तुष्ट करने का प्रयास करते हुए कहा
आजकल तो बहुत से साधन हैं माध्यम हैं लगातार सम्पर्क है।पल भर में कहीं भी बात सूचना पहुंचती है।समाचार मिल जाते हैं।पर पहले ऐसी बीमारियों कैसे आती थी आप तो जानते हैं कुछ बतायें।श्रीमती जी बोलीं
आप जानना चाहती हैं तो सुनिए मैं विस्तार से बताता हूं।गुरू जी ने अपनी बात शुरू करते हुए कहा –
देखो जब किसी रोग का प्रकोप सामान्य की अपेक्षा बहुत अधिक होता है तो उसे महामारी कहते हैं।जब यह एक स्थान क्षेत्र या सीमित जनसंख्या भूभाग तक सीमित रहती है इपेडेमिक कहलाती है किन्तु जब इसका दूसरे देशों भूभागों या महाद्वीपों तक विस्तार हो जाता है तो यह पैनडेमिक कहलाती है।वर्तमान का कोरोना ऐसा ही है।विश्व स्वास्थय संगठन ने ऐसी ही महामारी घोषित किया है।
पिताजी हमारे देश में ऐसी महामारी कब-कब फैली।कुछ बतायें।शेमुषी ने अपनी जिज्ञासा व्यक्त की
तो सुनों अधिक पीछे न जाकर 1915 से शुरु करते हैं इस साल इंसेफेलाइटिस फैला था पर यह भारत में नाममात्र को पहुंचा।इसके बाद 1918 में प्रथम विश्वयुद्ध में शामिल होने वाले कुछ सैनिक भारत आये तो अपने साथ स्पेनिश फ्लू नामक बीमारी यूरोप से लाये पर जल्दी ही काबू पा लिया गया।1961 में विशेषकर बंगाल के नमी वाले क्षेत्रों में हैजा फैला।काफी जाने गईं।1968 में फ्लू इन्फ्लूजा हांगकांग से फैलते हुए भारत आया।दो महीने में काबू हो गया इसके बाद 1974 में चेचक फैली जिसने लाखों लोगों के चेहरे खराब कर दिये।साठ प्रतिशत इसके मामले अकेले भारत में थे ।
पिताजी अपने पड़ोस के चाचा के चेहरे पर गडढे जैसे धब्बे क्या चेचक के ही थे।सवाल करते हुए कुछ देर पहले आकर बैठी एकाग्रता ने कहा,
हां बेटी कई लोगों का चेहरा तो उनसे भी अधिक खराब हो गया।पर सरकार के प्रयासों से यह बीमारी अब जड़ से समाप्त हो चुकी है।
अच्छा पिताजी हम लोगों को बचपन में टीके क्या ऐसी ही बीमारियों के लगते हैं।
हां सरकार यह सब खसरा काली खांसी आदि के बिल्कुल मुफ्त आशा कार्यकत्रियों एनमों से लगवाती है।
पिताजी चेचक के बाद के बारे में बताओ मुझे जानना है।शेमुषी बोली
हां बताता हूं।वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी के राज्य गुजरात के सूरत से 1994 में प्लेग की शुरुआत हुई।लोगों ने अनाज छुपाकर अन्नसंकट पैदा कर दिया था।उसके बाद 2002 में सार्स फैला।
आप जब पांच साल की थी तो 2006 डेंगू चिकनगुनियां फैला जिसके सबसे अधिक मरीज दिल्ली में थे।2009 में गुजरात से हैपेटाइटिस फैला।इसी से मिला-जुलता 2014 में पीलिया ओड़िसा में फैला।2015 में स्वाइन फ्लू मुर्गियों से 2017 में एन्सेफ्लाइटिस आया जिसने अकेले गोरखपुर में काफी बच्चों की जान ली।बच्चों चमगादड़ों ने 2018 में केरल से निपाह संक्रमण फैलाया।
गुरू जी ने जैसे महामारियों का इतिहास बच्चों के सामने रख दिया।
अच्छा मैं चलकर कुछ काम देखती हूं।आप बच्चों से बातें करों श्रीमती जी ने उठकर जाते हुए कहा।
बच्चों एक बात सबसे महत्वपूर्ण है कि भारत में पिछले तीस सालों में जितनी भी इस तरह की बीमारियां फैलीं उनको उचित स्वच्छता नियमित दिनचर्या से नियंत्रित करने की बड़ी भूमिका रही।
पिताजी कई बार टीवी में आया कि कोरोना भी चमगादड़ों से आया और चीन से पूरे विश्व में फैला।बड़ी बेटी एकाग्रता ने पूछा
जी बेटी कुछ ऐसी चर्चा चल तो रही है पर बिना जांच पड़ताल के सच मान लेना समझदारी नहीं है।फिलहाल तो वर्तमान में विश्व जिस तरह के संक्रमण से गुजर रहा है उस पर विजय पाना है।अपने आपको बचाना है।कुछ देशों ने दवा देना आरम्भ कर दिया है।भारत में अगले कुछ सप्ताह में टीकाकरण आरम्भ होने वाला है।
पिताजी आज से पहले इस तरह की समस्या नहीं आयी कि लाकडाऊन लगे बच्चे घरों में कैद हो जायें।विद्यार्थी महीनों स्कूलों न जाएं आनलाइन पढ़ाई हो।तरह-तरह के एप माध्यम पढ़ने के उपलब्ध हो जायें।सही सूचनाओं के साथ गलत भ्रामक सूचनाएं समाचार भी फैलें।शेमुषी ने अपनी शंका जाहिर की।
जी बात आप की सही है।एक साल से अधिक समय हुआ।कोरोना ने लोगों की दौड़ती-भागती जिन्दगी रोक दी।उस पर अचानक ब्रेक लगा दिया है।विद्यार्थी घरों में कैद हैं।स्कूल तो जा नहीं पा रहे।ऊपर से खेलकूद बन्द।तन और मन दोनों प्रभावित हो रहे हैं।हर समय घर में रहने से बच्चे अपनी पढ़ाई-लिखाई की समस्या के साथ -साथ अपने माता पिता के सामने आयी समस्याओं कठिनाईयों से अवगत हो जा रहे हैं।
तब करना क्या चाहिए कि विद्यार्थियों की यह आयु उनका भविष्य प्रभावित न हो। एकाग्रता बोली
जी सुनो घर पर रहकर बच्चे किस प्रकार की भावनाओं को अभिव्यक्ति कर रहे हैं।व्यवहार में कैसा बदलाव है।चिन्ता,उदासी,मनोरंजन,चिड़चिड़ापन या शरीर में कहीं दर्द, किसी से नोंक-झोक आदि पर घर के सदस्यों व उनके शिक्षकों को ध्यान देना है।उनसे इन सब पर चर्चा करनी है।उनको समझना है।साथ ही बच्चों के घर में रहने का यह अवसर उनके भविष्य के निर्माण का सुअवसर बना देना है।
पिताजी सबसे अधिक समझने की स्थिति विद्यार्थियों की है।उन पर घर से स्कूल का ऊपर से अच्छे परीक्षा परिणाम का दबाव है।आपको तो उनके साथ रहने का अनुभव है।विस्तार से बताओं ?
जी बेटी एकाग्रता आपकी चिन्ता स्वाभाविक है क्योंकि आप भी तो उसी आयुवर्ग से हो।ठीक है मैं बताता हूं ध्यान से सुनो –
सबसे पहला काम है शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहना इसके लिए अपनी दिनचर्या व्यवस्थित करनी पड़ेगी।समय से जागना,समय से सोना, समय पर पौष्टिक आहार लेना, योग-व्यायाम करना तथा थोड़ा भी सन्देह होने पर नियमित स्वास्थय जांच करवाना घर परिवार का दायित्व है कि स्वंय भी ऐसा करें और अपने बच्चों से भी करायें।
कारोना महामारी ने अवसर दिया है तो अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ना माडल बनाना, भोजन बनाना,घरेलू कामों साफ-सफाई बागबानी,पौधों में पानी देना आदि करके सीखना।मित्रों रिश्तेदारों से फोन पर बात करना। सवाल-जबाब करना आदि।विद्यार्थियों को उनकी उदासी चिन्ता से घर और विद्यालय दोनों मिलकर निकाल सकते हैं।
बच्चों यही नहीं साथ में टीवी देखना कार्ड लूडो कैरम शतरंज अन्त्याक्षरी जैसे घरेलू खेल खेलकर समय का उपयोग हो सकता है।साथ ही शिक्षकों की सहायता से घरेलू गतिविधियां पहेली बनाना,कहना,कविता कहानी स्लोगन चुटकुले पेंटिंग खेल-खिलौने आदि के काम उनको सिखाने के साथ मनोरंजन के काम भी करेंगे।वह अपनी कोरोना सम्बन्धी जानकारी शंकायें लिख सकते है बोल सकते हैं पत्रिका बना सकते हैं।
इसी में देश के कोरोना योद्धाओं केरल के 93 व 88 साल के वृद्ध पति-पत्नी,मध्यप्रदेश बागोटा की 49 साल की अंजना तिवारी,इसी राज्य की 38 साल की कविता अग्रवाल व बिहार शेखपुरा से 52 साल की सहायक नर्स किरण कुमारी की कहानी सुनाकर एक उत्साह पैदा किया जा सकता है।बच्चों यह किसी एक की नहीं सबकी जिम्मेदारी है।गुरू जी ने रुकते हुए कहा,
पिताजी भोजन का समय हो रहा है पर अभी बात पूरी नहीं हुई।हम और क्या कर सकते जब तब दवाई नहीं तक ढिलाई नहीं की भावना रखते हुए।शेमुषी ने गम्भीर होते हुए पूछा –
ठीक है बेटी बतालाता हूं आज बच्चो ही नहीं,उनके शिक्षक,माता-पिता,अभिभावक तक तनाव में आ गए हैं।सभी को पर्याप्त सहायता की आवश्यकता है।नही तो सब पर बुरा असर होगा।मैं तो कहूंगा कि सभी समय के साथ अपने को बदलते रहें।जानकारी रखें।अफवाहों,झूठी-खबरों से बचें।अधिक जानकारी चिन्ता का कारण बनती है।इसलिए सोशल मीडिया,टीवी देखने आदि का समय निश्चित करें।सभी हाथ धोने का विशेष ध्यान रखें खांसते-छींकते समय मुंह ढकें।किसी भी सामाजिक सभा भीड़ में जाने से बचें।
यहीं नहीं अभिभावक व शिक्षक स्वंय तो चिन्ता मुक्त रहें ही,अपने विद्यार्थियों बच्चों से समय-समय पर बात करते रहें।उनका अनुभव मन की बात जिज्ञासा पूंछे।बार-बार यह विश्वास दिलायें कि वह सुरक्षित हैं किसी प्रकार भ्रमित होने अथवा परेशान होने का आवश्यकता नहीं।
विद्यार्थी चूंकि सबसे अधिक अपने गुरुजनों पर विश्वास करतें हैं अतः वह अपने आचरण व्यवहार से ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करें कि बच्चे अनुकरण कर हर तरह से आगे बढ़ें।गुरू जी ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा
तो पिताजी आपने सब बता ही दिया।चलिए अब भोजन करते हैं।ठीक है बच्चों एक बार पुनः जब तक दवाई नहीं किसी प्रकार की ढिलाई नहीं दो गज की दूरी और मास्क है जरूरी।जी पिताजी जी पिताजी,यह कहते हुए शेमुषी और एकाग्रता अपने पिताजी के साथ भोजन के लिए बढ़ गए।