क्षणिका

दिलखुश जुगलबंदी- 35

हमने आनंद के दीपों को जगमगा दिया है

मैं सूरज हूँ कोई मंजर निराला छोड़ जाऊँगा,
डूबते हुए भी ढेर सारा उजाला छोड़ जाऊँगा.

सूरज ही तो ऐसा मंजर निराला छोड़ जाता है,
डूबते हुए भी ढेर सारा उजाला चांद-तारों के रूप में छोड़ जाता है.

शहर के अंधेरे को इक चिराग़ काफ़ी है,
सौ चिराग़ जलते हैं इक चिराग़ जलने से

जिन्दगी में कैसे चलना आपने सिखाया था,
अँधेरे में उजाला करके भी आपने दिखाया था.

जिन्दगी में कैसे चलना है सिखाने वाला भी वही है,
अँधेरे में उजाला करके दिखाने वाला भी वही है,
हम तो बस इसी भ्रम में गुम हुए बैठे हैं,
कि हमारे बिना संसार चलने वाला नहीं है.

जिस दिन हमारा यह भ्रम टूट जाएगा,
एक नया सूरज नई रोशनी लेकर आएगा,
फिर न तो महंगाई होगी, न महंगाई का रोना होगा,
भ्रष्टाचार व बेवफाई को कोई अंधेरा कोना ढूंढकर सोना होगा.

मैं चिरागों की भला कैसे हिफाज़त करता,
वक़्त सूरज तक को हर रोज़ बुझा देता है!

वक्त की बात मत कर ऐ मेरे दोस्त,
वक्त बड़े-बड़ों को औकात बता देता है,
राजा को रंक बना दिया उसने!
रंक को राजा भी त्तो वही बनाता है.

जब कोई ”हाथ” या ”साथ” दोनों छोड़ देता है,
तब ”कुदरत” कोई-न-कोई उंगली पकड़ने वाला भेज देती है,
इसी का नाम ”जिंदगी” है.

हिम्मत ए रौशनी बढ़ जाती है,
हम चिरागों की इन हवाओं से,
कोई तो जा के बता दे उस को,
चैन बढ़ता है बद्दुआओं से.

बद्दुआओं की बात करके दुआओं को शर्मिंदा मत करो,
ये दुआएं ही तो आशा का दीप जलाती हैं.

अँधेरे चारों तरफ़ सांय-सांय करने लगे,
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे,
तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर,
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे.

मेरा यही अंदाज ज़माने को खलता है.
कि मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है!!

कुछ तो कहेंगे लोग,
है सबसे बड़ा रोग.

हमें अपने अंदाज़ से बेपनाह मुहब्बत है,
जमाना चाहे तो खुद को बदल दे.

भाव, भक्ति, श्रद्धा, सदाचार-संग,
साक्षरता का जब होगा आलोक,
दैदीप्यमान होगा हर दिल,
जीवन में होगा ज्ञानप्रकाश.

साक्षरता की नींव में पनपें जब,
भाव-भक्ति-श्रद्धा-सद्विचार,
तभी जगत को मिल पाए, सद्गुण का उजियार.

बुझते चिराग से रोशनी का ख्वाब सजा दो,
जरा ताजी हवा का रुख इधर कर दो.

यह ताजी हवा ही बुझते चिराग का ख्वाब सजा देगी,
हमने भी ऐसा ही ख्वाब मन में सजा दिया है.

खुलकर,खिलखिलाकर जब तलक मासूम हंसी न खनकेगी,
कैसे जगमगाएंगे आनंद दीप,कैसे होगा उजियार?

खुलकर, खिलखिलाकर हंसो मेरे देश के नौनिहालो,
कि हमने आनंद के दीपों को जगमगा दिया है.

(यह दिलखुश जुगलबंदी ‘ब्लॉग ‘रोड शो- 13 : बातें प्रकाश की’ में, रविंदर सूदन, सुदर्शन खन्ना, चंचल जैन और लीला तिवानी की काव्यमय चैट पर आधारित है)

चलते-चलते
आज हमारे सुपुत्र राजेंद्र तिवानी के विवाह की सालगिरह है. राजेंद्र-शिप्रा को विवाह की सालगिरह की कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं. राजेंद्र-शिप्रा-
”गुलाब खिलते रहें आप दोनों की राहों में,
हंसी चमकती रहे आपकी निगाहों में,
खुशी की लहर मिले हर कदम आपको,
देता है ये दिल दुआ हर पल आपको.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “दिलखुश जुगलबंदी- 35

  • लीला तिवानी

    आनंद के दीपों का जगमगा उठना सफलता की पहली सीढ़ी है. यही वह आशा और विश्वास का संबल आनंद के पथ की ओर अग्रसर करता है.

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