गीतिका/ग़ज़ल

धूप-छाँव

कभी तुम धूप लगते हो कभी तुम छाँव लगते हो,
शहर की बेरुखी में तुम तो अपना गाँव लगते हो।

बताओ मैं भला कैसे कहूँ अपनों ने ठुकराया,
सभी राहें हुई जो बंद अंतिम ठाँव लगते हो।

कभी जब बात करते हो लुटे अधिकार की अपने,
सगे  सम्बंधियों के बीच कौआ-काँव लगते हो।

जो कहते थे इरादे देख अंगद-पाँव-सा तुमको,
उन्हीं के वास्ते अब तुम तो हाथीपाँव लगते हो।

तुम्हारे बिन अपाहिज़-सा पड़ा रहता अवध बेसुध,
तुम्हीं तो चेतना बल बुद्धि दोनों पाँव लगते हो।

— डॉ अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन