बालकहानी : शौचालय बन गया
नीली-नीली गिरिश्रृंखलाओं , हरे-भरे वृक्षों , टेढ़ी-मेढ़ी राहों से घिरे गोड़ आदिवासी बाहुल्य एक छोटा सा गाँव है चितनार। धान यहाँ के लोगों की मुख्य फसल है। यहाँ के रहवासी मेहनत-मजदूरी में भी पीछे नहीं रहते ; साथ ही वनोपज से अपनी बहुत सी आवश्कताओं की पूर्ति कर लेते हैं। प्रेम , सौहार्द्र , भ्रातृत्व लोगों की पहचान है। तीज-त्यौहारों की उमंगें इनमें स्पष्ट झलकती हैं। सादगी व निश्छलता से भरा चितनार अंचल का एक नामी गाँव है।
” माँ…! बाबूजी…! मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है। ” नाक सिकुड़ती हुई रोहणी आज स्कूल से आते ही खाट पर लेटी थी। उतने ही समय गौरी खेत से आयी थी। रसोईघर से निकली। बोली – ” क्या हुआ बेटी , क्या हुआ , कैसा लग रहा है ? जब पेट में दर्द है तो स्कूल से छुट्टी लेकर आ जाना था ना। ” रोहिणी को पेट में हाथ रख कराहती देख गौरी समझ गयी – ” अच्छा , मैं पानी लाती हूँ। पीना। थोड़ा सा नमक डाल देती हूँ। ” गौरी किचन से निकली तब तक विश्राम भी खेत से आ चुका था। वह कुर्सी पर बैठा था। फिर रोहिणी के पास आया। उसका चेहरा देखा। माथे पर हाथ रखा। उसे हल्की’सा बुखार था। पेट को उँगलियों से दबाया। कड़ा लगा। बोला – ” शाम हो गयी है। कल तुम मेरे साथ हाॅस्पिटल चलना। जैसे भी हो , रात को कटने देते हैं। भादो का महीना है। बारिश भी हो रही है। रात भी गहरा रही है। अभी तो हाॅस्पिटल जा ही नहीं सकते। ” फिर रात्रिभोजन हुआ। रात्रि-विश्राम की तैयारी हुई।
अर्धरात्रि तक रोहिणी की तबीयत और ज्यादा बिगड़ गयी। हर दस मिनट में उसे शौच लगता। रात भी गहरी होती जा रही थी। बारिश ने भी और गति पकड़ ली थी। बड़ी विकट स्थिति बन गयी। बाड़ी में लबालब पानी भरा था। खुला मैदान भी घर से बहुत दूर। घर से जंगल लगा था। सभी तरफ अंधेरा ही अंधेरा। छोटा सा घर। दो कमरे थे और एक किचन। तीन बड़े भाई थे। रात्रि का एक-एक पल काटना शर्म व दुःख से न केवल रोहिणी को बल्कि सबको बड़ी मुश्किल लग रहा था। विश्राम को दीवार पर नजर डालते ही लग रहा था, मानो आज घड़ी की सुईयाँ भी बड़ी धीमी चाल पर है।
कोने में बैठे चिंतित विश्राम की बेटी की बिगड़ती तबियत ने नींद उड़ा दी। चैन गायब हो गया उसका। आज उसे बड़ा दुःख लग रहा था। आत्मग्लानि की लपटों से घिरे विश्राम स्वयं में खो गया। अक्सर गौरी कहा करती थी – “शौचालय बनाना बहुत जरूरी है जी। जंगल से लगा गाँव है। जंगली जानवरों का डर लगा रहता है ; कीड़े-मकोड़े का भय सो अलग।” बड़ा बेटा राजेन्द्र का कहना होता – “बाबूजी, इस साल की फसल बेचकर शौचालय बना ही लेते हैं। बारिश में बड़ी परेशानी होती है।” सगा-सोदर का मशविरा होता – “आप लोगों को टाॅयलेट बनवा ही लेना चाहिए। बरसात का निपटना बहुत दूभर है।” विश्राम इन बातों को कभी अनसुनी कर देता तो कभी हँसी में उड़ा देता। तभी रोहिणी के बाबूजी… “नमक-चीनी का घोल है, इसे पिला दो…”, गौरी की गिलास-चम्मच की आवाज से विश्राम की तंद्रा भंग हुई। रातभर तिमारदारी चलती रही। सभी डरे हुए थे। डरी-सहमी रोहिणी में शिथिलता हावी होने लगी थी। आँखें धँसने लगी थी। जुबान लड़खड़ाने लगी थी। सारा घर चिंतित था। काली-बेचैनी रात बड़ी मुश्किल से कटी।
दूसरे दिन पौ फटते ही निकट के हाॅस्पिटल में रोहिणी को ले जाया गया। गौरी और विश्राम ने पिछली रात वाली पूरी बात डॉक्टर को बताई। इलाज शुरू हुआ। स्वास्थ्य में सुधार भी होने लगा। पाँच दिन तक एडमिट रही। छुट्टी के दिन डॉक्टर रोहिणी के बड़े भाई राजेन्द्र को मशविरा देते हुए कहा – “देखो जी, अब लड़की ठीक हो गयी है। थैंक गाॅड ! बच्ची की जान बच गयी। स्वास्थ्य भी बहुत जल्दी रिकवर हुआ। पर वीकनेस आ गयी है। रेस्ट बहुत जरूरी है। खान-पान का ख्याल रखना।” विश्राम और गौरी भी पास ही खड़े थे। ध्यानपूर्वक सुन रहे थे डॉक्टर की बातों को। “ये सब मौसम का असर है। खाने-पीने में ध्यान दिया करो। खाना हमेशा ढककर रखो। गर्म खाना ही खाओ। उबालकर पानी पानी पिओ। अपने घरों के आसपास की सफाई भी बहुत जरूरी है। साफ-सुथरे कपड़े भी पहनना चाहिए। हरी-ताजी सब्जियों का उपयोग करो। बाजारू एवं खुले में बिकने वाली चीजों से परहेज भी अत्यंत आवश्यक है। भोजन करने से पहले और शौच के बाद साबुन से हाथ बिल्कुल धोया करो। साफ-सफाई ही बीमारियों के रोकथाम का एक बढ़िया उपाय है। बाकी सब ठीक है। मैंने ये कुछ दवाइयाँ लिख दी है ; और कोई प्राॅब्लम हो तो ले आना। ओ के…। अच्छा विश्राम जी मैं आपको एक और सलाह देता हूँ। अपने घर में आप शौचालय बनवा ही लीजिए।” विश्राम तपाक से बोला – “डॉक्टर साहब, आप बोलो या न बोलो… मैं लेटरीन कुरिया बनवाऊँगा ही। और आज से ही काम शुरू करवाऊँगा।” सब के सब हँस दिये। फिर सभी घर आए।
सचमुच विश्राम के घर दीवाली तक शौचालय बन ही गया। सब खुश। सबने राहत की साँस ली। स्वच्छता व उत्तम स्वास्थ्य का संगमगृह बन गया विश्राम का घर। साथ ही पूरे गाँव को स्वच्छ शौचालय निर्माण की सीख मिली। सारा गाँव आज प्रकाशपर्व दीपावली मना रहा है। शौचालय निर्माण की शपथ चितनार गाँव की इस बार की दीवाली की बड़ी सुंदर नई पहल थी।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”