कविता

व्यथा

मैं सिर्फ कहने भर को
अन्नदाता बनाम किसान हूँ
पर हूँ बेबस
कभी मौसम के आगे
कभी अच्छी फसल या उसकी बिक्री के आगे
कभी पटवारी कभी सरकार के आगे
कभी कर्ज़ कभी मुआवजा के आगे
कभी भूख कभी बेबसी के आगे
इतनी बेबसी और बेबस
कैसा फिर मैं अन्नदाता बनाम किसान
जब पीढ़ियों से बस सहता आ रहा दर्द ही
कभी लगा लेता मौत के गले फांसी लगाकर
कभी तिलतिल मार डालती बीमारी
कभी लाचारी परिवार की
कभी आँसू बेबसी के
फिर मैं कैसा अन्नदाता बनाम किसान
खेतों को सिचूँ अपने पसीने, मेहनत से जिस से भरे पेट सभी का
पर मेरे हिस्से की न ही खुशी
न ही खुशहाली, न ही अच्छी ज़िन्दगी मिली कभी मिली
तभी तो
मैं सिर्फ कहने भर को
अन्नदाता बनाम किसान हूँ
पर हूँ बेबस सिर्फ बेबस।।
— मीनाक्षी सुकुमारन

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |