मेरे राम
रघुकुल भूषण सिया राम की
शोभा मुख वरणी न जाये
फूले फिरत अयोध्या वासी
हर्षित उर आनंद मनाये
जनम भयो जा दिन दशरथ घर
चारों दिश अति मंगल छाये
धरती अम्बर हर्षित अतुलित
शिव शंकर जी शीश नवाये
घूमत रघुबर कनक आँगना
शुभ मस्तक पे शिखा सजाये
पैरों रजत बँधी पैंजनियाँ
खग कागा संग खेल रचाये
कर में शोभित अति धनुष बाण
मन में मंद मंद मुस्काये
नृप दशरथ अति पुलकित होकर
मोहक छवि रघुवीर लखाये।।
— अनामिका लेखिका