गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

खुदा ने की है साजिश मेरी हस्ती मिटाने की
दुआ नाकाम हों जैसे यहां सारे जमाने की।

हंसते-हंसते ही हम खाक में मिल ही जाएंगे
बाद मरने के जाएगी ये आदत मुस्कुराने की।

जो कहना चाहते थे हम उनसे कह नहीं पाए
कुछ दिन से हालत है मुझे सब भूल जाने की।

हम अपने ख्वाब आंखों में तेरी छोड़ जाएंगे
वजह होगी यही काफी हमारी याद आने की।

कहीं ऐसा न हो आंखों से उनकी अश्क बह जाए
खबर उनको न दे कोई हमारी जान जाने की ।

सफ़र हो आखरी जानिब जल्दी न जला देना
के आदत है उन्हें अक्सर ही देर से आने की ।

— पावनी जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर