देश धर्मनिरपेक्ष, जातिनिरपेक्ष और भाषानिरपेक्ष तभी हो सकता है, जब आज के परिप्रेक्ष्य में किशनगंज (बिहार) या श्रीनगर (ज.क.) से कोई हिन्दू लो.स. चुनाव जीते, वाराणसी (उ.प्र.) से कोई मुस्लिम जीते, मधेपुरा लो.स. (बिहार) या दानापुर वि. स. (बिहार) से कोई गैर-यादव जीते । वहीं श्रीमान रामविलास पासवान जी सामान्य सीट से जीत दिखाए।
मद्रास से हिंदी भाषी उत्तर भारतीय जीते, तो लखनऊ से श्रीमान सुब्रह्मण्यम स्वामी जीतकर पार्लियामेंट जाए! एंग्लो इंडियन पटना से जीते, अररिया से कोई सिख बहन ! एक बिहारी भाई तिरुअनंतपुरम से जीते । शशि थरूर कटिहार में आकर दम-खम दिखाए। वैसे कटिहार से कोई जीत सकता है, यहां प्रायः अतिथि सांसद ही रहे हैं!
लिंगायत वाले झारखण्ड आकर चुनाव लड़े, तो हमारे आदिवासी भाई पंजाब में जीते । उत्तराखण्ड में बिहार से कोई मुशहर भाई जीते …..और तभी सच्ची जीत हो सकती है, अन्यथा चुनाव के समय ही ‘निरपेक्ष’ शब्द विलुप्त हो जाता है और जातिवाले – धरमवाले एकजुट हो जाते हैं । विकास – विकास खूब चिल्लाओ, ये संकीर्ण सोचवाले खुद से आगे कभी नहीं सोचेंगे!