कविता

सीख

जीवन में हमें
सतत सीख मिलती रहती है,
हम सबको हमेशा
जीव या निर्जीव
सबसे कुछ सीख ही
मिलती रहती है ।
अब यह हम पर है
कि हम
सीखना चाहते भी हैं या नहीं।
ठीक वैसे ही
हमें में
हार भी कुछ सीख ही देती है
और प्यार भी,यार भी।
हम कितना कुछ सीखते हैं
कितना कुछ
नजरअंदाज कर देते हैं।
परंतु दोष किसी को भी
नहीं दे सकते,
क्योंकि हमने
अपने विवेक से ही
सीखा या नजरअंदाज किया है,
जो लेना चाहा
वो तो लिया
बाकी हमनें
सब छोड़ दिया है।
हार ,प्यार, यार को
खुद से जिया है।
● सुधीर श्रीवास्तव

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921