लघुकथा

जुगत

कोरोना के कारण बहुत-से लोगों को बहुत-सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. कुछ लोग जिंदगी की जंग हार गए थे, कुछ लोगों ने दिखा दिया था, कि हारना हमने सीखा ही नहीं है.

कोरोना ने किशोर को भी बेरोजगार कर दिया था. अब वह इसी पशोपेश में पड़ा था, कि क्या करे!

आज के जमाने में मोबाइल सबकी तरह उसका भी अच्छा दोस्त है. यहीं पर उसने Nivar Cyclone के बारे में चेतावनी पढ़ी थी. Nivar Cyclone आया, कुछ बरबादी भी कर गया, बहुत-से Nivar Cyclone वॉरियर्स के शानदार किस्से भी छोड़ गया, पर एक घटना बड़ी विचित्र हुई-
”Nivar Cyclone के बाद आंध्र के इस गांव में समुद्र किनारे मिलने लगा सोना, लोगों ने लगाई दौड़ और…”
”Nivar Cyclone भी बहुत-से लोगों को सोना देकर मालामाल कर गया!” किशोर अचंभित था.

इस खबर को पढ़ते-पढ़ते एक और खबर आ गई-
”नागालैंड: जंगल में आग की तरह फैला हीरे मिलने का दावा, ग्रामीणों ने खोद दी पहाड़ी, जांच के आदेश”

”पहाड़ी और वह भी हीरों की, यह तो कमाल हो गया! न जाने कब कहां क्या-क्या मिल जाए?” किशोर विस्मित था.

एक और खबर चमकी-
”जो डॉग बाढ़ में फंस गया था, अब उसे मरीन में भर्ती कर लिया गया है.”
उसने वीडियो देखा. मेक्सिको की बाढ़ में फंसा डॉग बहुत डरा हुआ था और मदद के लिए मौन गुहार कर रहा था. तभी फरिश्ते की तरह एक आदमी नाव पर आया. उसने पहले डॉग को प्यार से पुचकार कर उससे दोस्ती बढ़ाई. फिर जिस अनुशासन से डॉग नाव पर आया, उसने तो डॉग की किस्मत ही बदल दी. अब उस डॉग को मेक्सिको नेवी में भर्ती कर लिया गया है. क्या जुगत बनी? बाढ़ में फंसने पर भी इतनी शानदार नौकरी!” किशोर के आश्चर्य का पारावार नहीं था.

अभी तो एक हाथ वाले राकेश की विस्मयकारी खबर बाकी थी. बंदे ने क्या जुगत निकाली थी!
”10 रुपये में किराए पर किताबें देने वाले इस शख्स ने जिंदगी का पाठ सिखा दिया”
छोटी-सी दुकान पर राकेश 10 रुपये में किराए पर किताबें देता था. किताब पढ़िए और वापिस दे जाइए. राकेश का कहना है-
”लोग पैसे इसलिए कमाते हैं ताकि वो अपने शौक पूरे कर सकें. मुझे पढ़ने का शौक़ है और वो बिना पैसे खर्च किये ही पूरा हो रहा है. एक अच्छा पाठक एक अच्छे लेखक से भी ऊंचे दर्जे का बौद्धिक व्यक्ति होता है.”
जन्म से ‘लेफ्ट’ बाजू न होने के बावजूद राकेश ने जिंदगी का ‘राइट’ पाठ सिखा दिया. सच है, दिल होता तो ‘लेफ्ट’ में है, पर बात हमेशा ‘राइट’ करता है, भले ही हम ‘राइट’ समय पर समझ नहीं पाएं.

देखते-ही-देखते दिल्ली के तांगेवाले के निधन की खबर चमकी-
”MDH Mahashay Dharampal Gulati: एक तांगे वाला जिसने 1,500 से 2,000 करोड़ रुपये बनाए”
इस तांगेवाले ने 6 व्यवसाय बदले, सातवें ने उसको 98 साल का फिट और हिट -CEO बना दिया, पद्मभूषण पुरस्कार भी उसकी झोली में था.

”प्रभु ने हर एक के लिए कोई-न-कोई जुगत बना रखी है, मेरे लिए भी कुछ अच्छा अवश्य होगा!” उसने सोचा और अपनी जुगत खोजने के लिए अपने हुनर की पहचान करने, साथ ही नौकरी के लिए विज्ञापन देखने में जुट गया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “जुगत

  • लीला तिवानी

    बोर्ड मीटिंग लाफ्टर क्लास लगवाने वाले गुलाटी का कर्मचारियों के प्रति रवैया शानदार रहता था। 98 साल की उम्र में उनके पास पद्मभूषण भी था और लक्ष्मी भी। FMCG सेक्टर के सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाले CEO थे MDH ग्रुप के धरमपाल गुलाटी। गुलाटी रोजाना सुबह 4 बजे उठकर पंजाबी बीट्स पर डंबल से कसरत करते थे, फिर फल खाते थे। इसके बाद नेहरू पार्क में सैर करने जाते थे, दिन पराठों के साथ गुजरता था, शाम होते ही दोबारा सैर पर निकलते थे और फिर रात में मलाई और रबड़ी का दौर शुरू होता था। 98 साल के महाशय फिर भी कहते थे ‘अभी तो मैं जवान हूं’।

Comments are closed.