प्रकृति की खूबसूरती का संकल्प है बसंत ऋतु
माघ शुक्ल पंचमी के दिन बसंत का जन्म हुआ था। बसंत पंचमी के दिन कला और संगीत की देवी सरस्वती की पूजा होती है। भव्य फूल, स्वस्थ फल, लताएं बन्दनवार से ऋतु रानी बसंत का अभिनंदन करती हैं। यह त्योहार वास्तव में ऋतुओं की रानी बसंत के नेतृत्व की सूचना देता है।
बसंत फबीले मौसम का महामेला है। प्रकृति की खूबसूरती का संकल्प है बसंत। सुन्दर-सुन्दर खिलते फूलों को चूमते शबनम के कतरे ज़िंदगी की हक़ीक़ी जान पहचान करवाते नज़र आते हैं। खेतों में दूर-दूर तक सरसों की पीली सोने जैसी चमकती फसलें आँखों के लिए एक तंदरूस्त खुराक, भव्य नज़ारों को तृप्ति में बदलती हैं।
मौसम के खूबसूरत परिवर्तन का नाम है बसंत। सूर्य जब तड़क सवेरा लेकर सुन्दर प्रभा बांटता है तो मौसम की अंगड़ाई में सुरभियां प्यार उड़ेलती हैं। लहलहाते हरे-भरे खेत, फूलों के रंगों की सुन्दर झलक, आमों के ऊपर पड़ा बूर किसी मतवाली कोयल का इकरार, मनमोहनी आवाज़ को तरसता है। फिर बसंत में रंग जाता है सारा संसार, प्रकृति, समस्त मानवता।
तुर्ले वाली पीली पगड़ी, परिधन गुलाबी लाचा (तहमद)ए किसी मूंछ फूट जवान के गोरे-गोरे मुख पर तैरती सूर्य जैसी हंसी, हाथ में सुन्दर लाठी (खूंटा), गले में सफेद माला, छाती के ऊपर मचलता सोने का कैंठा (अलंकार), मुकम्मल सभ्याचार में बसंत का स्वरूप। लहलहाते खेतों में एक सुन्दर नारी, सिर के ऊपर पीला दुपट्टðा घटाओं जैसा लहराता, पैरों में पाजेबों की पज-पज, लम्बे परांदे वाली चोटी में सुसज्जित फुम्मन, मटक-मटक पब छोड़ती जाती जन्नत के बीच। बसंत की आमद का प्यार उमड़ता।
फसलें लहलहा कर हंसती जोबन (यौवन) ऋतु में। कोमल-कोमल शाख़ाओं पर फूटते सूर्ख अनार। मौसम का गुलाबी रंग। सर्दी तथा गर्मी आपस में आँख मचोली खेलते हुए मर्मस्पर्शी मौसम के नाम पतझड़ क्रियाओं को अलविदा कहते हुए अतीत के पैरों में वर्तमान के अति सुन्दर चिन्ह छोड़ जाते। किसान- ज़िमींदार अपनी कमाई की खुशी के चिह्न, जवान भरपूर खिली पक रही फसलों के सुनहरी दृश्य देखता हुआ, घरेलू मज़बूरियों तथा ऋण (कर्ज़) से निज़ात पाने की ललक में तत्पर होते हैं।
बसंत ऋतु सुन्दरता की असली परिभाषा तथा मौसम में कामोद्दीपक होता है। इसके प्रमुख देवता काम तथा रति हैं। अतएव काम तथा रति की प्रधानतया पूजा करनी चाहिए। सरस्वती देवी विद्या, वृद्धि देती है। घरों में सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन ही होरी तथा धमाल गीत गाए जाते हैं गेहूं तथा जौ की स्वर्णिम वालियां भवगान को अर्पित की जाती हैं। इन दिनों भगवती सरस्वती के पूजन का विशेष फल है। इस मौसम में कामोत्तेजना हृदय में जगा जाती है अभिलाषा। बागों में तितलियां, भंवरे, कोयलें, मोर, पपीहे, अन्य पक्षी उपवन से दिलकश कलोल करते हुए बसंत को बसंती बना देते हैं। भव्य फूल तथा कलियों के सफेद जिस्म बसंत ऋतु को दिव्यता बख्शते। पक्षियों की चहचहाटट, सूर्य की किरणों के साथ मानवता को प्रसन्नता का संदेश देती। बसंत ऋतु में एकता, सद्भावना, नेतृत्व, दृढ़ता, आपसी भाईचारे का संदेश देते हैं प्रवासी पक्षियों के झुंड। यही बसंत की खूबसूरती हैं।
शुभ-शकुन की पवित्र परम्परा है बसंत ऋतुु। इस दिन सारी प्रकृति, काएनात तथा वनस्पति मानवता को सत्यम शिवम सुन्दरम् का संदेश देती है।
निर्झर, नदी नालों में पानी की शुद्धता बढ़़ती हुई खुशहाली का संदेश देती है। पहाड़ों की खूबसूरती में बसंत की ऋतु दुल्हन जैसी सजती हुई जन्नत का आभास करवाती है। यह ऋतु मानव की खुशहाली की प्रतीक है। नील गगन को चूमती पहाड़ों की चोटियों के ऊपर खिलती बसंत में तरह-तरह के फूलों की महक टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों को ज़िंदगी का नाम देती है। पहाड़ों की खूबसूरती में भी बसंत की ऋतु एक विलक्षण परिवर्तन करती है। बर्फ के घुलने से शुद्ध पानी अपनी परिवर्तनशीतला में नवीनता उत्त्पन्न करता है। निर्झरों का शुद्ध दूधिया पानी ऊपर से बहता हुआ नीचे जब धरती को चूमता है तो दर्पण की किरचियों जैसा टूटकर फैलता हुआ अनेक प्रतिबिम्ब उत्पन्न करता है जो जवानी, भव्यता और जन्नत का स्वरूप लेता है। इस दिन चारों ओर बसंती रंग की सुन्दरता बिखर जाती है।
बसंत ऋतु के सबंध में श्री गुरु अमरदास जी ने अपनी वाणी में कहा हैः बनसपति मऊली चढ़िआ बसंत। ऐह मन मऊलिआ सतिगुरु-संग। तुम साच ध्यावह मुगध मनां। तां सुख पावहु मेरे मनां। ये पक्तियां जीवन के सुखद पलों को दर्शाती हैं। वनस्पति आने पर बसंत की आमद तथा सुख की प्राप्ति सतगुरु की उपासना से ही है।
भक्त कबीर जी अपनी वाणी में लिखते हैंः मऊली धरती मऊलेआ आकास। घटि घटि मऊलेआ आतम प्रगाश आदि।
श्री गुरु अर्जुन देव जी अपनी वाणी में कहते हैंः तिस बसंत जिस प्रभु कृपाल। तिस बसंत जिस गुर दयाल।। मंगल तिसकै जिस एक नाम।। तिस सद बसंत जिस रिदै नाम।।2!! आदि।
श्री गुरु अमरदास जी लिखते हैंः बसंत चढ़िआ फूली बनराय।। ऐह जीअ जंत फूलहि हरि चित लाए।। आध्यात्मिक संदर्भ में आत्त्म विकास की अवस्था ही बसंत है जो गुरुकृपा से ही उपलब्ध है। इस दिन आसमान में पतंगे (गुड्डियां) तथा डोरे इस तरह पेचें लड़ाती हैं कि सारा आसमान एैसे नज़र आता है जैसे किसी चित्रकार ने हवा में चित्रकारी कर रखी हो। रंग बरंगी पतंगों की खूबसूरती आसमान को सौंदर्य बख़्शती है। आ-बो-ई-ओ की लम्बी ध्वनियां फ़िज़ा में जब गूंजती हैं तो जवानी की परिभाषा उमड़ती हैं। बसंत में बढ़ौतरी होती है।
बसंत वाले दिन सारे भारत में ही दीर्घ-लघु मेले, पतंगबाजी के लाखों के मुकाबले (प्रतियोगिता) होते हैं। विशेष तौर पर लखनऊ आदि शहरों में पतंगबाजी की शर्तें लगती हैं। विशेष तौर पर पंजाब के अमृतसर में तथा फिरोजपुर आदि शहरों में पतंगबाजी की शर्तें लगती हैं तथा देर रात तक पतंगों के पेचे चलते हैं। पतंगबाजी का त्यौहार भी इस दिन धूमधाम से मनाया जाता है। लड़कियां भी पतंगें उड़ाती हैं। माता-पिता अपनी प्यारी-प्यारी बेटियों को स्वय पतंगें-डोर ख़रीदकर देते हैं, ताकि लड़कियों में बराबरता का आत्मविश्वास बढ़े।
भाई गुरदास जी ने जीवन से उपमा देते हुए अपनी कविता में पतंग (गुड्डी) के सबंध में कमाल का लिखा हैः
पवन गवन जैसे लटूआं फिरत रहै, पवन रहित गुड्डी उड़ न सकत है।
डोरी को मरोर जैसे लटूआ फिरत रहै, ताऊ हाऊ गिर परै थकत है।।
कंचन असुध जिऊ कुठारी ठहगत नाही, शुद्ध भए निहचल छवि कै छकत है।
दुरमति दुविध भ्रमत है चतुर कुंट, गुरु मति एक टेक मौन न बकत है।।
यह कविता मानव और प्रभु के सबंध में है परन्तु गुड्डी की उपमा कमाल की है।
बसंत के दिन घरों-धार्मिक स्थानों, संस्थाओं आदि में पीले रंग का प्रसाद, पीले रंग के मीठे चावल बनाए जाते हैं। प्रत्येक शहर, नगर गांव में मेले लगते हैं। काम तथा रति की प्रधानतया पूजा की जाती है। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाकर संसार की मूकता तथा उदासी दूर की। देवी ने वीणा के मधुर नाद से सब जीवों को वाणाी प्रदान की, इसलिए उस देवी को सरस्वती कहा गया। यह देवी विद्या, बुद्धि को देने वाली है। इसलिए बसंत के दिन घरों में सरस्वती की पूजा की जाती है।
यौवन हमारे जीवन का बसंत है तो बसंत इस सृष्टि का यौवन मानव को अपने अस्वस्थ देह को स्वस्थ बनाने के लिए प्रकृति के सान्निध्य में जाना चाहिए। प्रकृति सुख दुःख के द्वन्द्वों से परे है। इसमें प्रभु की विद्यमानता सदैव भासती रहती है क्योंकि प्रभु-स्पर्श जीवन में सदैव एक ही ऋतु रहती है और वह है बसंत और प्रभु-स्पर्शी जीवन में एक ही अवस्था रहती है और वह है यौवन। प्रकृति के सम्मोहन में मानव के तन में स्फूर्ति, मन में उल्लास, बुद्धि में प्रसन्नता और हृदय में चेतना प्रगट होती है सृष्टि की सुन्दरता और यौवन की रसिकता का यहां सुमेल होता है, वहां निराशा, नीरसता, निष्क्रियता जैसी बातों का स्थान ही कहां? यही बसंत का वैभव है। बिना वर्षा के सृष्टि को पुनः नवपल्लवित करने का प्रभु का चमत्कार बसंत में साकार होता दिखाई देता है। जीवन और बसंत को जिसने एक रूप कर दिया एैसे मानव को हमारी संस्कृति में संत कहा गया है जो जीवन में बसंत लाए वही संत है।
यौवन और संयम, आशा और सिद्धि और वास्तविकता जीवन और मौसम, भक्ति और शक्ति, सर्जन और विसर्जन- इन सबमें समन्वय करने वाला, जीवन में सौंदर्य, संगीत स्नेह निर्माण करने वाला बसंत हमारे जीवन में साकार बने, तभी हमने बसंत को जाना है, पाया और पचाया है- ऐसा कहा जाएगा। सम्भवतः इसी सार तत्त्व को जानकर बसंत पंचमी को ‘श्री पंचमी’ भी कहा जाता है। श्री का अर्थ है शोभा, सौंदर्य, रमणीकता। यह बाहर तथा आन्तरिक दोनों में ही व्यक्त है। इसी में जीवन की सार्थकता है।
बसंत में प्रदूषण दूर होता है। बसंत जीवन में हर्षोल्लास तथा आशाओं के गुलदस्ते लाती है। बच्चों में बसंत ऊर्जा, इच्छा शक्ति, खुशी की किलकारियां भरती हैं। बसंत प्रफुल्लता था ताज़गी का संदेश देती है। भगवत गीता में अर्जुन से भगवान कृष्ण ने कहा था, मैं ऋतुओं में बसंत हूं। बसंत समता की पर्याय है। इस दिन बंगाल, उत्तरी भारत तथा बंगला देश में पीले तथा गुलाबी रंग में होली भी खेली जाती है।
इस दिन के साथ कई ऐतिहासिक घटनाओं का भी सम्बन्ध है। विशेष तौर पर वीर हक़ीकत राय की शहादत का। वीर शहीद हक़ीकत राय की समाधि बटाला (गुरदासपुर, पंजाब) में है। यहां भारी मेला लगता है। नामधारी कूका लहर की कुर्वानियां, जरनैल शाम सिंह अटारी की शहीदी आदि घटनाएं तथा शुभकार्यों का भी इसके साथ सम्बन्ध है।
इस दिन धार्मिक स्थानों में कीर्तन, शब्द गायन तथा प्रवचनों का आयोजन भी किया जाता है।
विशेषतः श्री हरि मन्दिर साहिब (श्री दरबार साहिब) अमृतसर, पंजाब में सारा दिन बसंत की स्तुति में शब्द गायन (कीर्तन) किया जाता है। बसंत ऋतु समस्त ऋतुओं की महारानी है। मानवता के जीवन में इसकी महानता हृदय में उतरने वाली तथा शुद्धता, सुन्दरता, शान्ति तथा हर्षोल्लास की प्रतीक है।
— बलविन्दर ‘बालम’