गजल
जान बाकी है जहान बाकी है।
अभाव में जीनों को किसान बाकी है।
लग गई सारी उम्र चुकाने में उसको
सिर पर अभी तक लगान बाकी है
अभी इक दौर में ही आधा घर बिखर गया
अभी और भी ये तूफान बाकी है
अभी पूरे करने जो खाब सोचे हैं
कुछ पाने को थोड़ी अरमान बाकी है