वह महत्वपूर्ण व्यक्ति
‘बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल’ ही कालांतर में ‘बी. पी. मंडल’ के नाम से जगतप्रसिद्ध हुए, जो 1952 और 1962 में मधेपुरा से बिहार विधान सभा के सदस्य चुने गए ! किन्तु पामा गाँव की घटना ने उन्हें 1965 में कांग्रेस छोड़ने को मजबूर कर दिया और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए, फिर इसी पार्टी से 1967 में मधेपुरा से लोकसभा सदस्य चुने गए । इसी बीच उन्हें बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया, किन्तु वे तब सांसद थे, विधायक नहीं! …. और वे छह माह सांसद रहते बिहार सरकार में मंत्री बन चुके थे, जिनके कारण उनसे डॉ. राममनोहर लोहिया खपा थे, क्योंकि वे सांसद पद से इस्तीफा देकर विधान सभा की सदस्यता हासिल नहीं कर पाया था । पुनः, मंत्री बने रहने में कानूनी अड़चन थी ! इसी बीच बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कृष्णबल्लभ सहाय, महेश प्रसाद सिंह और रामलखन सिंह यादव 28 जनवरी 1968 को परबत्ता के विधायक सतीश प्रसाद सिंह के पास आये और उन तीनों ने उनसे कहा- चलिए एक जगह ! किन्तु यह नहीं बताया- कहां चलना है । वे तीनों उन्हें लेकर राजभवन पहुंच गये और समर्थन की चिट्ठी राज्यपाल को सौंप दी और उसी शाम साढ़े 7 बजे शपथग्रहण का समय तय हो गया। सतीश प्रसाद सिंह के साथ सिर्फ दो मंत्री शत्रुमर्दन शाही और झारखंड पार्टी के एन. ई. होरो को शपथ दिलायी गयी। कांग्रेस के तीनों प्रमुख नेता कृष्ण वल्लभ सहाय, महेश प्रसाद सिंह और रामलखन सिंह यादव को भरोसा था कि बी. पी. मंडल को एम. एल. सी. मनोनीत करने के बाद सतीश प्रसाद सिंह इस्तीफा दे देंगे । इस बीच कृष्ण वल्लभ सहाय के विश्वस्त परमानंद सहाय ने बिहार विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह पर बी.पी. मंडल के मनोनयन की सिफारिश मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह की मंत्रिमंडल ने भेजा और उसी आधार पर बी.पी. मंडल को विधान परिषद की शपथ दिलायी गयी। सतीश प्रसाद सिंह बिहार के पहले पिछड़े वर्ग (कुशवाहा) से मुख्यमंत्री थे, किन्तु इस पद पर मात्र तीन दिन रहकर 1 फरवरी 1968 को त्यागपत्र दे देते हैं, हालांकि उनसे इस्तीफे लेना इतना भी सहज नहीं रहा, फिर बड़े नाटकीय घटना-चक्र के बाद इसी दिन बिहार के पहले यादव मुख्यमंत्री बने- बी. पी. मंडल, लेकिन एक माह ही मुख्यमंत्री रह पाए ।