विश्ववंद्य माँ
भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ प्रदान की थी, तो उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार भी प्राप्त हुई थी । भारत की नागरिकता प्राप्त ये समर्पित ‘नन’ मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के कुष्ठ रोगियों की ओर से ‘मदर’ कहलाने लगी, तो वे स्पेन के महान संत टेरेसा से काफी प्रभावित थीं, जिन्होंने स्पेन के लोगों को नए जीवन जीने का अमर-संदेश दिया था। फिर 18 की उम्र में वे संत टेरेसा से प्रभावित हो संन्यासिन हो गई। फिर अपने आदर्श और महान संत टेरेसा से प्रेरित होकर उन्होंने अपना नाम टेरसा रख ली और फिर ‘मदर’ संबोधन कर भारत ने समुचित प्यार दिया! वे पहलीबार 1929 में भारत आई थी, उनसे पहले एग्नेस को पहले आयरलैंड के लोरेटो मुख्यालय और फिर डब्लिन भेजी गयी। यहां उसे मिशनरी के कार्यों की ट्रेनिंग मिल पाई। भारत पहुंचते ही सबसे पहले उनको दार्जिलिंग में नोविसिएट का कार्य सौंपा गया। यहां से कोलकाता के इंटाली के सेंट मैरी स्कूल में भूगोल की टीचर बनकर उन्होंने बच्चों को पढ़ाया। इस स्कूल में वे 1929 से 1948 तक रहीं। इस दौरान कुछ समय वे इस स्कूल की अध्यक्षा भी रहीं। मदर ने 7 अक्टूबर 1950 को कोलकाता में मानवता सेवी गतिविधियों के लिए आचार्य बसु रोड पर मिशनरीज ऑफ चैरिटीज की स्थापना की और वे यहीं की रह गयी । मृत्यु के बाद उन्हें पोप द्वारा ‘संत’ की आध्यात्मिक उपाधि भी प्रदान की गई।