सियासत
सियासत पनपती है
बड़े घरानों में
किलकारियां गुंजती हैं
शहजादों की
दुसरी तरफ
पैदा होते हैं ! वोट
दर्जनों की तादाद में
रोते-बिलखते
संघर्ष की बेड़ियों को तोड़
इक्का दुक्का निकल जाते हैं
शिक्षा को पतवार बना!
बाकि तिल-तिल कर बस
वोट देते हैं
अशिक्षित शहजादों के लिए
जो अपाहिज करते हैं
प्रजातंत्र को
कुछ ऐसा ही जाति का दलदल
अभी भी है गांव में