गीत/नवगीत

गीत – नारी जीवन

शम्मा-सा जलता है पल-पल,और पिघलता नारी जीवन।
देकर घर भर को उजियारा,आँखें मलता नारी जीवन ।।
कर्म निभाती है वो तत्पर,हर मुश्किल से लड़ जाती
गहन निराशा का मौसम हो,तो भी आगे बढ़ जाती
पत्नी,माँ के रूप में सेवा,तो क्यों खलता नारी जीवन।
देकर घर भर को उजियारा,आँखें मलता नारी जीवन।।
संस्कार सब उससे चलते,धर्म भी सभी उससे खिलते
तीज-पर्व नारी से पोषित,नीति-मूल्य सब उसमें मिलते
आशा और निराशा लेकर,नित ही पलता नारी जीवन।
 ।देकर घर भर को उजियारा,आँखें मलता नारी जीवन।।
कहने को तो दो घर उसके,पर सब कुछ है बेमानी
भटक-भटककर,तड़प-तड़पकर कटती देखो ज़िन्दगानी
त्याग औ’ करुणा,धैर्य-नम्रता,कंटक चलता नारी जीवन।
देकर घर भर को उजियारा,आँखें मलता नारी जीवन।।
कर्मठता,पर शोषण होता,छल,मातम के मेले हैं
दुख,तकलीफ़ें,व्यथा-वेदना,हर पल रोज़ झमेले हैं
स्वयं छोड़कर,सारे गृह को हरदम फलता नारी जीवन ।।
।देकर घर भर को उजियारा,आँखें मलता नारी जीवन।।
ताक़त बेहद,पर नेहिल है,है संतोषम् परम् सुखम्
नहीं निराशा औ’ मायूसी,हाल वही अब भी कायम
नतमस्तक हो अनाचार सह, ख़ुद को छलता नारी जीवन।
।देकर घर भर को उजियारा,आँखें मलता नारी जीवन।।
— प्रो.(डॉ.) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]