जोगिया एैसी कोई बीन बजा नए साल में।
संतुष्टि की अंजलि में हैं चाह नए साल में।
जोगिया एैसी कोई बीन बजा नए साल में।
मन से निर्भय होकर बैठे फूलों ऊपर तितली।
महफ़िल भीतर ढोल-नगाड़े और ससियों में किकली।
संगीतक लोरी का गीत सुना नए साल में।
जोगिया एैसी कोई बीन बजा नए साल में।
शुद्धता, बुद्धता, समता, भौतिक, दैहिक का सुन्दर बाग।
मानवता के भीतर हो तिलिस्म चुम्बकीए अनुराग।
कर्मन, धर्मन, अर्चन साथ दुआ नए साल में।
जोगिया एैसी कोई बीन बजा नए साल में।
गन्ने वाले खेतों में उड़ती है ज्यों मुरगाबी।
ऐसे घर-घर हर्षता हो जैसे फूल गुलाबी।
पतझड़ में भी ख़ुशबू के भाग जगा नए साल में।
जोगिया एैसी कोई बीन बजा नएं साल में।
सोई ज़गीरों को एवं सोई हुई ज़मीरों को।
पैरों भीतर पड़ी हुई ख़ूनी ज़जीरों को।
तदवीरों, तकरीरों के साथ मुका नए साल में।
जोगिया एैसी कोई बीन बजा नए साल में।
दृश्य-अदृश्य तनाव दिलों से सारे झुक जाएं।
आतंक, प्रचंड, पतितपुने एवं पाखण्ड सब रूक जाएं।
आत्म तुष्टि के संवाद रचा नए साल में।
जोगिया एैसी कोई बीन बजा नए साल में।
भिन्न-भिन्न गुलदस्ते हों सब ख़ैर अंदेश वाले।
किरमची नारंगी सूहे लाल गुलाबी काले।
हर चौखट पर बंदनवार सजा नए साल में।
जोगिया एैसी कोई बीन बजा नए साल में।
नवयुवकों भीतर भरी जाए रचनात्मक शक्ति।
मंगलकारी बने घर-घर में कर्मठता की भक्ति।
छैल-छबीले गुलज़ार खिला नए साल में।
जोगिया एैसी कोई बीन बजा नए साल में।
अधिकार मिलेगा सब, गर सच्च वाला नाम दें।
उन्नति के आगाज को मंज़िल का अंज़ाम दें।
‘बालम’ के गीतों की आवाज़ उठा नए साल में।
जोगिया एैसी कोई बीन बजा नए साल में।
— बलविन्दर ‘बालम’