क्षणिकाबाल कविता

सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन- 23

1 .चलती रही जिंदगी (क्षणिका)

कभी गमों की धुंध
कभी खुशियों की धूप
कभी सफलता
कभी विफलता
हौसला और जुनून
हिम्मत और लगन ले
चलती रही जिंदगी।
जीत का स्वप्न सजाती
हार को हराती
खिलने की चाहत लिए
चट्टानों से टकराती
मंजिल की ओर
बढ़ती रही जिंदगी।
थाम लिया दामन ख्वाब का
जिद और जुनून का
मंजिल पाने आतुर कौशल का
शूलों में फूल
खिलाती रही जिंदगी
दर्द-ए-दिल में
मुस्कुराहट के बीज
बोती रही जिंदगी।
हंसती रही, हंसाती रही
पलकों में आंसू छुपाकर
महकती-चहकती रही
ऊंची उड़ान के सपने
सजाती रही जिंदगी।
तमन्ना और उल्लास की
खिलखिलाहट से
नादान दिल की
मुस्कुराहट से
रंग रंगीली रंगोली
रचती रही जिंदगी
चलती रही जिंदगी।
ईंट-सीमेंट की चारदीवारी
आत्मीयता की नमी
स्नेह की रिमझिम
प्यार-दुलार की बौछार
सावन की खुशियां
घर को स्वर्ग बनाती
चलती रही जिंदगी।
धुंधलाई अंखियों में
ढलती शाम में
अपनेपन की
धूप गुनगुनी,
थरथराते हाथों का
संबल बनती,
सहेजती-सहलाती
चलती रही जिंदगी।
धूप में छांव और
धुंध में उजियार
ढूंढती रही जिंदगी
चलती रही जिंदगी।
-चंचल जैन

2 .रजाई (बाल गीत)
नरम-नरम गरम-गरम
रुई से बनी मै हूं रजाई नरम
मां की ममता
पिता के प्यार-सी
दादा-दादी का दुलार
नाना-नानी के नेह-सी।
सूती धागे से या ऊन से बुनी
मखमली या मलमल की
मुझ में भरा मुलायम कपास
आओ दूंगी मैं खूब नवास।
पिंटू, मिंटू, चिंटू, शिंटू
चुन्नी, मुन्नी, झेनी, शिनी
सब आ जाओ, सब आ जाओ
झटपट-झटपट आ जाओ
लिपट-लिपट अब सो जाओ
मीठे-मीठे सपनों में खो जाओ
मन में एक दूजे का हो विश्वास
आओ दूंगी मैं खूब नवास।
नरम-नरम गरम-गरम
रुई से बनी मै हूं रजाई
कड़कती हो या ठिठुरती ठंड
हमराह कोई ना ठिठुरे
याद सदा रखना यह बात
सब से मैत्री हो प्रेमिल भाव
प्यार की उष्मा, प्रेम की ऊर्जा
रिश्तों में हो जोश-उल्लास।
आशादीप जला हरना तम
हर जीवन हो जगमग-जगमग ।
नरम-नरम गरम-गरम
रुई से बनी मै हूं रजाई नरम।
-चंचल जैन

3 .प्यारा पहिया (बाल गीत)

चक्र कहे कोई,
कोई कहे मुझे पहिया
लकड़ी-रबड़ से बना
या मजबूत लोहे का
गोल-गोल धूमता रहूं
बड़े-बड़े काम मैं करू
मजे से उठा लूँ मैं बोझा
मेरे जैसा नहीं है कोई दूजा
मुझे नहीं सुहाता आराम
काम से होता हैं बड़ा नाम।

बैलगाड़ी हो या
शानदार कार
छुक-छुक रेल हो
या हवाई जहाज
गति देना है कर्म मेरा
निरंतर बढ़ते रहना धर्म मेरा।
जीवन में गतिमान रहूं
प्रगति पथपर निरंतर बढ़ूं।

हवा भरो,चलता ही चलूं
पानी में भी तारणहार बनूं
खेल-खिलौने या हो ठेला
सब का साथ निभाऊं अलबेला
धूप-छांव या सर्दी-गर्मी
मेरा काम है चलते रहना
आगे-आगे बढ़ते रहना
आलस का न लो तुम नाम
मुझे सुहाता है बस काम.

प्यारे बच्चो सुनो मेरी बात
रुक-रुक कर न चलना तुम्हें
मंजिल पास हो या दूर
राह में कांटे हो या पत्थर
जीवन में गतिमान रहो
प्रगति पथपर निरंतर बढ़ो।
आँखों में जो ख्वाब सजा हैं
सपना सच हो, ऐसा जतन करो।
-चंचल जैन

चंचल जैन का ब्लॉग-

https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/jain-chanchalgmail-com/

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन- 23

  • लीला तिवानी

    जुनून से है जिंदगी,
    हौसले से है जिंदगी,
    नरम-नरम कपास भी उष्मा और नवास देती है,
    अनुभव से सिखाती है जिंदगी.

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