जन्मशताब्दी पर स्मारक डाकटिकट जारी हो
बिहार, झारखंड, पूर्वांचल, प. बंगाल के पश्चिमी क्षेत्र और नेपाल, भूटान, जापान तक फैले संतमत सत्संगियों के आदर्श सद्गुरुदेव महर्षि मेंहीं परमहंस के उत्तराधिकारी महर्षि संतसेवी जी का जन्म 20 दिसम्बर 1920 को बिहार के मधेपुरा जिला के गम्हरिया में कायस्थकुल में जन्म लिए ‘महावीर लाल’ ही महर्षि मेंहीं के सान्निध्य में ‘संतसेवी’ हो गए, जिनकी इस वर्ष जन्मशताब्दी है। सद्गुरुदेव के अविवाहित रहने पर वे भी एतदर्थ संन्यासी और आजन्म ब्रह्मचारी रहे, किन्तु महर्षि मेंहीं के कहने पर कटिहार जिले के मनिहारी और नवाबगंज में बच्चों को पढ़ाने लगे। वर्ष 1930-31 में महर्षि मेंहीं द्वारा स्थापित पहला संतमत सत्संग मंदिर नवाबगंज में बना और फिर बाद में मनिहारी गंगातट पर साधना कुटी बना, जहाँ स्वामी संतसेवी रहने लगे, यहीं उन्होंने कई आध्यात्मिक ग्रंथों का प्रणयन भी किया, जिनमें ‘योग महात्म्य’ ग्रंथ की रचना यहीं की गई थी। बाद में महर्षि मेंहीं के साथ कुप्पाघाट आश्रम, भागलपुर आ गए। ध्यातव्य है, ‘योग महात्म्य’ को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी सराहे हैं। ‘महर्षि संतसेवी हीरक-जयंती अभिनंदन ग्रंथ’ में भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के शुभकामना-पत्र भी प्रकाशित है, तब वाजपेयी जी लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे। स्वामी संतसेवी को ‘महर्षि’ विभूषण सनातन हिन्दू धर्म के एक शंकराचार्य ने प्रदान किया था। देश के राष्ट्रपति रहे डॉ. शंकर दयाल शर्मा महर्षि संतसेवी के विचारों से प्रभावित रहे हैं। भारत रत्न श्री वाजपेयी सहित प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर, श्री नरेन्द्र मोदी से लेकर बिहार, झारखंड सहित कई राज्यों के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, आईएएस, आईपीएस, अभिनेता, अभिनेत्री, खिलाड़ी इत्यादि महर्षि संतसेवी के विचारों से प्रभावित रहे हैं। महर्षि संतसेवी के जन्मशताब्दी अवसर पर स्मारक डाकटिकट जारी हो, तो सरकार की ओर से सम्मान व पुरस्कार योजना शुरू हो।