सहना आया है
सार्थक अधिनियम पर
हिंसात्मक प्रतिकार
अथवा डराकर
दुकानों या गाड़ियों को
बंद कराना
सत्ता हासिल करने का
जुगाड़तंत्र है,
लोकतंत्र नहीं !
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अगर बहुमत के अधिनियमों से
आपको परेशानी है,
तो जब आप बहुमत में आएं,
तो अधिनियम पलट डालिये….
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आज एन्टी-प्रेमचंद जैसे
कथाकार की जरूरत है,
जो ‘पूस का दिन’ लिखे !
पूस के इन दिनों
जो कड़ाके की ठंढ पड़ रही,
आज महसूस कर रहा हूँ !
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“पूस की रात”
कटे कैसे ?
न मेरे पास जबरा है,
न तो मुन्नी !
एक ‘कम्बल’
है भी तो बकाए के;
जिनके पैसे माँगने
सहना भी तो आ गए
आज ही !