मुक्तक/दोहा

दोहे – सुबह की सैर

करो सुबह की सैर नित,दूर रहेंगे रोग।
जीवन हो खुशहाल तब,दीर्घ आयु का योग।।

सुबह मिले ताज़ी हवा,जो सचमुच वरदान।
हर्ष मिले,आनंद भी,सांसें पायें मान।।

रक्तचाप का संतुलन,सुगर नियंत्रित होय।
काया फुर्तीली रहे,जीवन सुख को बोय।।

सैर सुबह की कह रही,निद्रा त्यागो नित्य।
पैदल चलना है भला,साथ देय आदित्य।।

अंतर के आनंद से,जीवन गाये गीत।
सैर करे नित प्रात: ही,बनकर श्रम का मीत।।

सैर सुबह की चेतना,है विवेक का काम।
सुबह-सवेरे ही फले,सुखदायी आयाम।।

कहें चिकित्सक सैर कर,लेकर नव उत्साह।
काया नित हल्की रहे,कहें देख सब वाह।।

सैर संग बंदा करे,योग  व प्राणायाम।
तो पाये समृद्धता,महके आठों याम।।

सैर सुबह की है सदा,इंसां को वरदान
बस रक्खो निज ज़िन्दगी,के प्रति कुछ सम्मान।।

बिना सैर काया बने,भारी और विकराल।
वज़न बढ़े,रुकता नहीं,कर देता बेहाल।।

सैर सुबह की है अमिय,रखे दवा से दूर।
घूमो नित,तो हर उमर,हो चहरे पर नूर।।

सैर सुबह की बंदगी,करो सभी गुणगान।
रहे ऊर्जा नित्य ही,करें कृपा भगवान।।

दोस्त-यार बनते बहुत,करो सुबह की सैर।
वृद्ध बनें चोखे युवा,रहे कोय ना ग़ैर।।

पार्क और लम्बी सड़क,सैरसपाटा रोज़।
व्यायाम करते मिलें,अनगिन नित,बिनखोज।।

सेहत रखना है प्रखर,तो करना ना भूल।
सैर सुबह की थाम लो,हट जायें सब शूल।।

यही कहूँ सबसे ‘शरद’,सुन लो देकर ध्यान।
सैर सुबह की नित भली,है यह मंगलगान।।

— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]