दो हज़ार इक्कीस
आशा बहुत है तुमसे हे दो हजार इक्कीस |
तोड़ो सभी निराशा हे दो हजार इक्कीस |
यह बीस जो गया है तम भर गया जहां में-
भर दो नया उजाला हे दो हजार इक्कीस |
मारा बहुत है इसने दुर्दिन दिखा गया है |
कुछ ले गया है हमसे पर कुछ सिखा गया है |
कितनों की सांस छीनी कितनों को रौंद डाला –
गिर गिर के संभलना भी लेकिन सिखा गया है |
नव कल्पना के पर ले, लो आ रहा है इक्कीस |
आशान्वित रहो बस ,यह कह रहा है इक्कीस |
होगा उजास पावन ,भारत की सर जमी पर –
उम्मीद की बिपाशा दिखला रहा है इक्कीस |
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’