मुक्तक/दोहा

दो हज़ार इक्कीस

आशा बहुत है तुमसे हे दो हजार इक्कीस |
तोड़ो सभी निराशा हे दो हजार इक्कीस |
यह बीस जो गया है तम भर गया जहां में-
भर दो नया उजाला हे दो हजार इक्कीस |

मारा बहुत है इसने दुर्दिन दिखा गया है |
कुछ ले गया है हमसे पर कुछ सिखा गया है |
कितनों की सांस छीनी कितनों को रौंद डाला –
गिर गिर के संभलना भी लेकिन सिखा गया है |

नव कल्पना के पर ले, लो आ रहा है इक्कीस |
आशान्वित रहो बस ,यह कह रहा है इक्कीस |
होगा उजास पावन ,भारत की सर जमी पर –
उम्मीद की बिपाशा दिखला रहा है इक्कीस |
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016