कविता

कैसे हम नूतन वर्ष मनाएं?

नूतन वर्ष की आहट भी
सहमी-सहमी सी लगती है
हर चेहरे मुरझाए से हैं
खुशियां भी सहमी लगती हैं..।।

बीते वर्ष का ज़ख्म अभी
हम सब कब तक भर पाएंगे
रोजी-रोटी है छिनी हुई
बोलो कैसे मुस्काएँगे..।।

उम्मीदों का दामन भी तो
हैं सिमट चुके हालातों से
अपने अपनों से दूर हुए
किसके संग खुशी मनाएंगे..।।

बच्चों का तो बचपना छिना
हाथों से सबके हाथ छुटे
माँ की लोरी में दर्द छुपा
बच्चे कैसे सो पाएंगे..।।

है नए वर्ष में दुआ यही
खुशियां सबको फिर मिल जाएं
हर चेहरे पर हों मुस्काने
पहले जैसा सब हो जाए..।।
पहले जैसा सब हो जाए..।।

— विजय कनौजिया

विजय कनौजिया

ग्राम व पत्रालय-काही जनपद-अम्बेडकर नगर (उ0 प्र0) मो0-9818884701 Email- [email protected]