मुँह कब से मियाँ हो गया जी
यह कहकर आप
‘अहं’ का परिचय दिया हैं !
आपने क्या किया है अबतक ?
जो उद्धरण बनाऊं !
फ़ख़्त, नील बटा सन्नाटा !
क्या-क्या लिखते हो जी !
प्रवचन तो आप झाड़ते हैं !
कभी आप, तो कभी तुम !
आपका दर्शन आपको सलामत !
बचकाना या बच काना !
जैसा कि आपने
अभी-अभी सिखाए, जी !
आप समीज पहन लो !
मुँह कब से मियाँ हो गया जी,
जो सुगर पेशेंट हो गया !
जय हो, भय हो, क्षय हो….
आज दिन भी मंगल है जी
और हम दोनों कुतर्कों के
दंगल में हैं जी !